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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सिउजी जे चललन पुरबी<ref>पूर्व देश को</ref> बनीजिआ<ref>वाणिज्य के लिए</ref> गउरा देइ भेलन<ref>हुई</ref> संघ साथ हे।
फिरु फिरु<ref>फिरो लौट आओ</ref> गउरा हे, हमरी बचनियाँ, मरि जइबऽ भुखवे पियास हे॥1॥
भुखवे पियसवे सिउजी तोर पर<ref>तुम्हारे ऊपर</ref> तेजम<ref>त्यागूँगी, वार दूँगी</ref> भँगवा धतुरवा के लगि जइहें निसवा<ref>नशा</ref> हे।
गउरा सुन्नर रस बेनियाँ डोलइहें हे॥2॥
सिउजी के भींजले<ref>भींग गया</ref> जमवा से जोड़वा<ref>जामा जोड़ा, दुलहे को पहनाया जाने वाला वस्त्र, जिसका निचला भाग घाँघरदार, घेरावदार होता है तथा कमर के ऊपर इसकी काट बगलबंदी के ढंग की होती है</ref> गउरा पर एक बुनियो<ref>बूँद भी</ref> न परे हे।
सासु लिपलका<ref>लिपा हुआ, साफ सुथरा किया हुआ</ref> सिउजी धँगहूँ<ref>धाँगना, रौंदना, बिगाड़ना</ref> न पवली, ननदिया जी के एको उतरबो<ref>उत्तर</ref> न देली हे।
ओहे गुने<ref>उसी कारण</ref> ना एको बुनियो न परे हे॥3॥

शब्दार्थ
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