भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"महँगाई के दौर में / सूर्यकुमार पांडेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकुमार पांडेय |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:59, 15 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

दाना लेने चिड़िया निकली,
महँगाई के दौर में।

घर का राशन ख़त्म हो गया
खाना बहुत ज़रूरी है,
पेट पालना है बच्चों का
यह कैसी मजबूरी है?
जिस दुकान पर भी वह जाती,
चीज़ें सही नहीं मिल पातीं,
घोर मिलावट सब कुछ नक़ली,
महँगाई के दौर में।

लम्बी लाइन देख-देखकर
हिम्मत टूट गयी उसकी,
थैली और अठन्नी दाबे,
वह तब चुपके से खिसकी।
सोच रही किस दर को जाऊँ,
सस्ते में राशन ले आऊँ,
मुश्किल में, है हालत पतली,
महँगाई के दौर में।