भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गीत-1 / दयानन्द पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दयानन्द पाण्डेय |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:20, 16 जुलाई 2015 का अवतरण
बंसवाड़ी में बांस नहीं है
चेहरे पर अब मांस नहीं है
कैसे दिन की दूरी नापें
पांवों पर विश्वास नहीं है।
इन की उन की अंगुली चाटी
दोपहरी की कतरन काटी
उमड़-घुमड़ सपने बौराए
जैसे कोड़ें बंजर माटी
ज़ज़्बाती मसलों पर अब तो
कतरा भर विश्वास नहीं है।
शाम गुज़ारी तनहाई में
पूंछ डुलाई बेगारी में
सपनों बीच तिलस्म संजोए
पहुंचे अपनी फुलवारी में
फीके-फीके सारे झुरमुट
अंगुल भर उल्लास नहीं है।
[नया प्रतीक, मई, १९७८ में प्रकाशित]