भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गीत-2 / दयानन्द पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दयानन्द पाण्डेय |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:21, 16 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

तिनका-तिनका डूब गया
अफवाही बाढ़ में
इस लिए मेंहदी नहीं रचेंगी
भौजी भरे अषाढ़ में

दीवारों की देह हो गई
सारी काली-काली
हमरो गांव में आ गई
अब की दुई-चार दुनाली
किसी गरीब को फिर मारा है
रोटी, सब्जी, दाल ने

पीपल के पातों पर इसी लिए
अब की नहीं बही पुरवाई
चुप-चुप सहमी-सहमी है
सगरो गांव की अमराई
किसी ऊंट को फिर मारा है
मुहावरे वाले पहाड़ ने

[1979]