भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कोई संग हो मुझसे बेहतर कहाँ है / सिया सचदेव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया सचदेव |अनुवादक= |संग्रह=अभी इ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:42, 21 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

कोई संग हो मुझसे बेहतर कहाँ है
मुझे जो तराशे वो आज़र कहाँ है

फ़क़त तीरगी है दिलों में समायी
यहाँ रौशनी अब मय्यसर कहाँ है ..

तेरे नाम करनी थी ये ज़िंदगानी
मगर मेरा ऐसा मुक़द्दर कहाँ है

मोहब्बत की दस्तार तो मुंतज़िर है
मगर इसके लायक़ कोई सर कहाँ है

है दीवार ओ दर और छत इस मकाँ में
जिसे घर कहा जाए वो घर कहाँ है

गुनहगार आँखे छलकती नहीं क्यों
ख़ुदा की तलब है तो फिर डर कहाँ है

मेरे दिल के एहसास ज़िंदा है अब तक
सिया का है दिल कोई पत्थर कहाँ है