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देश हमर अछि भारत वर्ष, सभसँ बढ़ल चढ़ल उत्कर्ष
जनिक माथपर उज्जर केश, बनल हिमालय निर्मल वेश
हिलि-मिलि गंगा-यमुना नीर, उमड़ल जेहिना मन आवेश
वृद्ध पितामह भारत वर्ष, जनिक कोर चढ़ि पाबी हर्ष॥1॥
कुरु क्षेत्र केर कथा सुनाय, आखर रामायणक बुझाय
बोधथि गुन - गुन गीता गाबि, कानि उठी हम जखन चेहाय
नानी वृद्धा भारतवर्ष, कथा सुनाबथु लाखो वर्ष॥2॥