भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आभास / राजकमल चौधरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकमल चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:13, 5 अगस्त 2015 के समय का अवतरण

गामक कात अछि पहाड़-सन ठाढ़, अन्हारेँ डूबल
धृतराष्ट्रक वज्राललिंगनसँ गत्र-गत्र छइ टूटल फाटल
अथवा हाड़-हाड़ छइ कोनो क्षयरोगी मृतप्रायक जागल
महादेवके टूटल मन्दिर अछि भसिआयल, सायत
पैट्रोमेक्सक इजोतमे नवका मुखियाके नब दलान पर
खन-खन तबला, रेँ-रेँ सारंगी, सुललित कण्ठक मधुर गान पर
गुंजित, मुस्की बनल ग्रामवासी जनता के मुख-मलान पर
सीबीपट्टी के प्रसिद्ध नटुआ के अछि पद-पायल, सायत

धूमिल आकृति, विकृति, आश्रयहीन सर्वहारा अतिदीन
सूतल, इनार के जगति निकट अछि छाया परिचयहीन
अन्धकार चद्दरि ओढ़ने अछि, लज्जा-आशा-दुख-भयहीन
दूर देस के पथिक कोनो अछि भुतिआयल, सायत

चिरसंगिनि दरिद्रता, अभाव, भय, दुख, पीड़ा के अभ्यस्ता
बइसलि भुखले अछि आँगनमे पतिक प्रतीक्षामे अति ह्नास्ता
खुट्टामे बान्हल अछि गाभिन बकरी, श्वानक भयसँ त्रस्ता
एहि युगके अभिशापेँ नारी अछि अन्हरायल, सायत

बीच गाममे माथ उठयने अछि ठाढ़ गाछ एक पाकड़िके
बड़ी दूर धरि आरि-डारि छइ, पता ने लागए जड़िके
नव वसन्त हित स्वागत गीत रचइए, नव जीवन नव कोपड़िके
युग युगसँ संस्कृतिक प्रतीक बनि अछि आयल, सायत