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राति दीप सन! हम मुक्ता खसल सीप सन
आसक बाती। साँझे खन प्रिय, गाउ पराती
नइँए आन उपाय
बाती, दीप, तेल सभ सूतल जाय...
मुदा, निन्नक उपरान्त स्वप्न
स्वप्नमे केवल, मात्र अहीँ
छी स्वप्न अहीँ!
मध्यमे नदी सात, धार चौदह टा
मध्यमे शान्ति-स्नेह नइँ, अपजस टा
तइयो अहाँ एतहि छी
तइयो सदिखन हम बताह सन
सभठाम तकैत रहै छी।
(मिथिला दर्शन, मइ: 1959)