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"प्रगतिशीलता / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’" के अवतरणों में अंतर

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दया-कृपा-करुणा ई सब किछु
सड़ल, पुरातन थिक परम्परा,
प्रगतिशीलताकेर नाम पर
आइ मनुजता रहल थरथरा।
लाज-धाख रखइत छी ककरो?
तँ भीतरसँ अहाँ फोंक छी,
माय-बापकेर कहल करै’ छी?
टहल करै’छी? बूड़ि लोक छी।