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अखिल भव नव भावमय हो,
कंठमे जड़ चेतनक नव प्रगतिमय सुर-ताल-लय होहो।नरक इंगित पर इंगितपर विवश कुंठित निरन्तर काल नाचए,
मोह विपतिक भंग हो, ओ स्वयं निज विधि लेख बाचए,
अमरता राजए ‘भुवन’मे ‘भुवन’ मे भय-प्रकंपित प्रकपित मरण-भय हो। अखिल भव नव भावमय होहो॥
बहए मलयानिल निरन्तर, रहए सजला मेघमाला,
पड़ए पाला नहि विनाशक, जरए दुखद निदाघ ज्वाला,
आधि, व्याधि, उपाधि, जड़ता क्षय करए नहि, स्वयं क्षय हो।
अखिल भव नव भावमय होहो॥
हो प्रलय झंझाक वारण, रहए कुसुमित कुसुम-कानन,
भालपर हो यशक चानन, दिव्य दीप्ति-प्रदीप्त आनन,
मचए मंगलमोद घर घर, मन सभक आनन्दमय हो।
अखिल भव नव भामवमय होभव भावमय हो॥
मान पाबथि सतत मानी, बनथि युगक प्रतीक ज्ञानी,
प्राणमय हो राष्ट्रवाणी, राष्ट्रहित कटिबद्ध प्राणी,
संग मिथिला, मैथिली औ ओ मैथिलक अभ्युदय, जय होअखिल भव नव भावमय हो।।हो।
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