"भैरवी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’" के अवतरणों में अंतर
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भैरवी झंझाक गतिमे झरत जगतक पाप। | भैरवी झंझाक गतिमे झरत जगतक पाप। | ||
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तार स्वप्नक टूटते जागरण भैरव गीत, | तार स्वप्नक टूटते जागरण भैरव गीत, | ||
− | + | वर्त्तमानक चरण-घातेँ चूर्ण पतित अतीत। | |
− | कोनहु कोनहिमे मलिन अछि जकर क्षीणालोक | + | |
+ | कोनहु कोनहिमे मलिन अछि जकर क्षीणालोक | ||
जे न जगबय ज्वाल उर, ने हरय तिमिरक शोक। | जे न जगबय ज्वाल उर, ने हरय तिमिरक शोक। | ||
− | क्षणिक दीपक | + | |
− | भैरवी झंझाक झोंकक कतहु अछि न | + | क्षणिक दीपक मृत्तिकाक न आइ बचत इजोत, |
+ | भैरवी झंझाक झोंकक कतहु अछि न इरोत। | ||
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आइ जन-जनमे न भ्रम हो कतहु मुक्ता-सीप, | आइ जन-जनमे न भ्रम हो कतहु मुक्ता-सीप, | ||
द्वीप-द्वीपक तिमिरहारी उगओ गगनक दीप। | द्वीप-द्वीपक तिमिरहारी उगओ गगनक दीप। | ||
− | आइ केशव-ग्रीवमे नहि छजत | + | |
+ | आइ केशव-ग्रीवमे नहि छजत गुजामाल, | ||
सिन्धु मथि प्रस्तुत जखन अछि कौस्तुभक मणिमाल। | सिन्धु मथि प्रस्तुत जखन अछि कौस्तुभक मणिमाल। | ||
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विद्युतक ई क्षणिक विलसित बन्द युग-युग हेतु, | विद्युतक ई क्षणिक विलसित बन्द युग-युग हेतु, | ||
महा पवनक वेग चालित भिन्न मेघक सेतु। | महा पवनक वेग चालित भिन्न मेघक सेतु। | ||
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इन्द्रधनु नवरंग रंजित स्वयं लोपित क्षुद्र, | इन्द्रधनु नवरंग रंजित स्वयं लोपित क्षुद्र, | ||
− | कैल ज्या योजित अपन पिनाक जखनहि | + | कैल ज्या योजित अपन पिनाक जखनहि रुद्र। |
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नहि पिपासित भूतलक हित लघु जलक ई कूप, | नहि पिपासित भूतलक हित लघु जलक ई कूप, | ||
− | उमड़ि | + | उमड़ि आयल गगन-तटमे जखन मेघ-स्तूप। |
− | आइ नहि नूपुरक | + | |
+ | आइ नहि नूपुरक रुनझुन, वेणु-वीणा शब्द, | ||
गगनमे गर्जल जखन गम्भीर स्वरमे अब्द। | गगनमे गर्जल जखन गम्भीर स्वरमे अब्द। | ||
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+ | कामिनी-यौवन न पार्थक रुचि-विलासक वस्तु, | ||
पाशुपत पूजित जकर शुचि लक्ष्य तपसँ अस्तु। | पाशुपत पूजित जकर शुचि लक्ष्य तपसँ अस्तु। | ||
− | घिचत कृष्णा- | + | |
+ | घिचत कृष्णा-वीर दुःशासनक नहि से शक्ति, | ||
चढ़ल कृष्णक अंगुलिक ब्रण-बद्ध वस्त्रक भक्ति। | चढ़ल कृष्णक अंगुलिक ब्रण-बद्ध वस्त्रक भक्ति। | ||
− | स्वर्ण वन-उद्यान उजड़त | + | |
− | कनक-मृग छल हरल जे | + | स्वर्ण वन-उद्यान उजड़त मरुत-सुतहिक हाथ, |
− | नहि | + | कनक-मृग छल हरल जे खत मैथिली दशमाथ। |
− | किरणमाली उदित होइछ पूर्ण राका-इन्दु। | + | |
− | मास मधु की | + | नहि निशा-पट तिमिर क्षलित नखत फेनक बिन्दु, |
− | विषुव | + | किरणमाली उदित होइछ पूर्ण राका - इन्दु। |
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+ | मास मधु की लय मनाओत दग्ध उर-उद्यान, | ||
+ | विषुव रेखा टपि उगल छथि भानु दिग् ईशान। | ||
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मेघमाला सजल झरते गलित नीरक गर्व, | मेघमाला सजल झरते गलित नीरक गर्व, | ||
देखु, गगनक फाँकसँ हँसि रहल शारद पर्व। | देखु, गगनक फाँकसँ हँसि रहल शारद पर्व। | ||
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क्षीण आशावरी-स्वर जत भैरवी झंकार, | क्षीण आशावरी-स्वर जत भैरवी झंकार, | ||
किन्तु नहि संहार ई, नव सृष्टिहिक उपहार। | किन्तु नहि संहार ई, नव सृष्टिहिक उपहार। | ||
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18:21, 19 अगस्त 2015 के समय का अवतरण
आइ वातावरणमे अछि तप्त युगकेरताप,
भैरवी झंझाक गतिमे झरत जगतक पाप।
तार स्वप्नक टूटते जागरण भैरव गीत,
वर्त्तमानक चरण-घातेँ चूर्ण पतित अतीत।
कोनहु कोनहिमे मलिन अछि जकर क्षीणालोक
जे न जगबय ज्वाल उर, ने हरय तिमिरक शोक।
क्षणिक दीपक मृत्तिकाक न आइ बचत इजोत,
भैरवी झंझाक झोंकक कतहु अछि न इरोत।
आइ जन-जनमे न भ्रम हो कतहु मुक्ता-सीप,
द्वीप-द्वीपक तिमिरहारी उगओ गगनक दीप।
आइ केशव-ग्रीवमे नहि छजत गुजामाल,
सिन्धु मथि प्रस्तुत जखन अछि कौस्तुभक मणिमाल।
विद्युतक ई क्षणिक विलसित बन्द युग-युग हेतु,
महा पवनक वेग चालित भिन्न मेघक सेतु।
इन्द्रधनु नवरंग रंजित स्वयं लोपित क्षुद्र,
कैल ज्या योजित अपन पिनाक जखनहि रुद्र।
नहि पिपासित भूतलक हित लघु जलक ई कूप,
उमड़ि आयल गगन-तटमे जखन मेघ-स्तूप।
आइ नहि नूपुरक रुनझुन, वेणु-वीणा शब्द,
गगनमे गर्जल जखन गम्भीर स्वरमे अब्द।
कामिनी-यौवन न पार्थक रुचि-विलासक वस्तु,
पाशुपत पूजित जकर शुचि लक्ष्य तपसँ अस्तु।
घिचत कृष्णा-वीर दुःशासनक नहि से शक्ति,
चढ़ल कृष्णक अंगुलिक ब्रण-बद्ध वस्त्रक भक्ति।
स्वर्ण वन-उद्यान उजड़त मरुत-सुतहिक हाथ,
कनक-मृग छल हरल जे खत मैथिली दशमाथ।
नहि निशा-पट तिमिर क्षलित नखत फेनक बिन्दु,
किरणमाली उदित होइछ पूर्ण राका - इन्दु।
मास मधु की लय मनाओत दग्ध उर-उद्यान,
विषुव रेखा टपि उगल छथि भानु दिग् ईशान।
मेघमाला सजल झरते गलित नीरक गर्व,
देखु, गगनक फाँकसँ हँसि रहल शारद पर्व।
क्षीण आशावरी-स्वर जत भैरवी झंकार,
किन्तु नहि संहार ई, नव सृष्टिहिक उपहार।