भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"काला कौआ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

16:46, 1 सितम्बर 2015 का अवतरण


आज उठा मैं सबसे पहले!
सबसे पहले आज सुनूँगा,
हवा सवेरे की चलने पर,
हिल, पत्तों का करना ‘हर-हर’
देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले,
लाल, सुनहले!

आज उठा मैं सबसे पहले!
सबसे पहले आज सुनूँगा,
चिड़िया का डैने फड़का कर
चहक-चहककर उड़ना ‘फर-फर’
देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले,
लाल सुनहले!

आज उठा मैं सबसे पहले!
सबसे पहले आज चुनूँगा,
पौधे-पौधे की डाली पर,
फूल खिले जो सुंदर-सुंदर
देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले?
लाल, सुनहले

आज उठा मैं सबसे पहले!
सबसे कहता आज फिरूँगा,
कैसे पहला पत्ता डोला,
कैसे पहला पंछी बोला,
कैसे कलियों ने मुँह खोला
कैसे पूरब ने फैलाए बादल पीले,
लाल, सुनहले!

आज उठा मैं सबसे पहले!