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"काला कौआ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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− | + | यही सोचता मेरे घ्ज्ञर पर | |
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− | + | साबुन लेकर भागा। | |
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− | + | मिटा न उसका कालापन तो | |
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16:47, 1 सितम्बर 2015 के समय का अवतरण
उजला-उजला हंस एक दिन
उड़ते-उड़ते आया,
हंस देखकर काला कौआ
मन ही मन शरमाया।
लगा सोचने उजला-उजला
मैं कैसे हो पाऊँ-
उजला हो सकता हूँ
साबुन से मैं अगर नहाऊँ।
यही सोचता मेरे घ्ज्ञर पर
आया काला कागा,
और गुसलखाने से मेरा
साबुन लेकर भागा।
फिर जाकर गड़ही पर उसने
साबुन खूब लगाया,
खूब नहाया, मगर न अपना
कालापन धो पाया।
मिटा न उसका कालापन तो
मन ही मन पछताया,
पास हंस के कभी न फिर वह
काला कौआ आया।