भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दूरबीन / आरसी प्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरसी प्रसाद सिंह |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:01, 16 सितम्बर 2015 के समय का अवतरण

दूरबीन से देखो भाई,
जो न पास में पड़े दिखाई!

आसमान के तारे लगते
जैसे जुगनू घास में,
चाँद खिसककर आ जाता है
जैसे पैसा पास में!
 या कि रामदाने की लाई,
दूरबीन से देखो भाई!

छप्पर पर के कद्दू-जैसा
लगता सूरज दूर का,
धु्रव तारा लगता है मानो
लड्डू मोतीचूर का!

खा मत लेना समझ मिठाई,
दूरबीन से देखो भाई!

तीस कोस पर जो मंदिर है
लगता अपने द्वार पर,
ठीक नाक के पास पहुँचते
जो फल रहते ताड़ पर!

ज्यों पॉकेट में दियासलाई,
दूरबीन से देखो भाई!