भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खिलते और खेलते फूल / नरेन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:10, 16 सितम्बर 2015 के समय का अवतरण

खिलते और खेलते फूल!
भारत माता का भविष्य हो,
नव युग के तुम नए शिष्य हो,
बढ़ो भारती के आँचल में
हर दिन दूने रात चौगुने-
जीवन की डाली पर झूल!

नभ में फहरे सदा तिरंगा,
बहती रहे देश में गंगा,
भारत की सतरंगी धरती
हर भारतवासी की माता-
इसे कभी मत जाना भूल!

कभी पराई आस न करना,
मेहनत से अपना घर भरना,
बूँद पसीने की बो कर
तुम देखोगे सोना उगलेगी
इस धरती की मिट्टी धूल!

सदा बाँटकर खाना, भाई!
कभी न करना बुरी कमाई!
हँस कर फूल खिलाते, गाते
हिल-मिलकर रहना जीवन में
पथ में कभी न बोना शूल!

बोलो मीठे बोल आम से,
आँख चुराना नहीं काम से,
भारत माता की संतानो,
सेवक और सिपाही बनना-
हर दुश्मन के लिए बबूल!