भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गुलाब / रामेश्वरप्रसाद गुरु 'कुमारहृदय'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBaalKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

12:54, 21 सितम्बर 2015 का अवतरण

काँटों में है खिला गुलाब!

आसपास पैनी नोकें हैं
छेद रही हैं उसका तन,
किंतु पंखुड़ियों पर हँसता है
कोमल लाल गुलाबी मन।

उपवन में भरता रहता है
वह सुगंध से यह संदेश,
हँसकर और हँसाकर रहना
जीवन में हों चाहे क्लेश।

तेरे इस दुखमय जीवन से-
मुझे ज्ञान मिल रहा गुलाब!
काँटों में है खिला गुलाब!