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"गड़बड़झाला / देवेंद्रकुमार" के अवतरणों में अंतर

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फिर क्या होगा-
 
फिर क्या होगा-
 
गड़बड़-झाला!
 
गड़बड़-झाला!
 
 
रूप हवा के
 
 
हवा हुई शैतान!
 
खिड़की दरवाजे खड़काए,
 
बेपर कागज खूब उड़ाए,
 
सारे घर में धूल बिखेरे
 
अम्माँ है हैरान!
 
हवा हुई शैतान!
 
 
हँसते फूलों को दुलराती,
 
बादल कहाँ-कहाँ ले जाती,
 
बाँसों से सीटी बजवाए
 
कैसी इसकी शान!
 
 
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09:33, 4 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

आसमान को हरा बना दें
धरती नीली, पेड़ बैंगनी
गाड़ी नीचे, ऊपर लाला
फिर क्या होगा-
गड़बड़-झाला!

कोयल के सुर मेढक बोले
उल्लू दिन में आँखें खोले
सागर मीठा, चंदा काला,
फिर क्या होगा-
गड़बड़-झाला!

दादा माँगे दाँत हमारे
रसगुल्ले हों खूब करारे
चाबी अंदर, बाहर ताला,
फिर क्या होगा-
गड़बड़-झाला!

चिड़िया तैरे, मछली चलती
आग वहाँ पानी में जलती
बरफी में है गरम मसाला,
फिर क्या होगा-
गड़बड़-झाला!

दूध गिरे बादल से भाई
तालाबों में पड़ी मलाई
मक्खी बुनती मकड़ी जाला,
फिर क्या होगा-
गड़बड़-झाला!