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हँ....! हम मनुक्ख छी
सर्वश्रेष्ठ प्राणी
हमरा लाज नहि
कहै सँ
सभ सँ बेसी गुण
सभ सँ बेसी शील
सभ सँ बेसी विवेक
लेने पृथ्वी पर
आयल छी।
ओ विवेक, पशुओ सँ
कम होइत चलि गेल
मुँह बन्न भ' गेल
जेना केओ जबरदस्ती
सीबि देने होअय
बिना कोनो ताग आ टाकु सँ।
देखैत रहि गेलहुँ
आँखि पथरा गेल छल
ओ क्षण मे छनाक होइत
एकटा करेज फाटि रहल छल
नोरे-झोरे नहायल आँखि
मुदि ई बैइमान ठोर
नहि पटपटेलक
नहि किछु बकार निकाललक।
अन्तर्मनक ध्वनि
झंकृत क' रहल छल
आत्माक तार केँ
बेर-बेर दोमैत छल
किछु बाजैक लेल
विवेक-शीलक लाज राखैक लेल
बेर-बेर यत्नरत रहल
मुदा एखटा आखरक
सहस्रांशो भाग नहि निकलल।
एकटा ओ हृदय
जे आनंदक अनुभूति केँ
आनंदक महापूल बान्हि रहल छल
तप्त हृदय सँ तृप्ति पबैत रहि गेल
जेना कण-कण तृप्तिक
आकांक्षा सँ बाट निहारैत छल।
केहेन परमादी छी
की केहेन छी निरीह
केहेन दुर्बल अछि समय
जे चौकठि सँ आगू
घोड़ा जकाँ लगबैछ लगाम
मनुक्ख छी वा
परिस्थितिक दास?