भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दुविधा में जीवन कटे / त्रिलोक सिंह ठकुरेला" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोक सिंह ठकुरेला |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:20, 6 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
दुविधा में जीवन कटे, पास न हों यदि दाम।
रूपया पैसे से जुटें, घर की चीज तमाम॥
घर की चीज तमाम, दाम ही सब कुछ भैया।
मेला लगे उदास, न हों यदि पास रुपैया।
'ठकुरेला' कविराय, दाम से मिलती सुविधा।
बिना दाम के मीत, जगत में सौ सौ दुविधा॥