भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"समय और मैं / असंगघोष" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=असंगघोष |अनुवादक= |संग्रह=खामोश न...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:51, 10 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

मैंने उबड़-खाबड़
जीवनपथ पर
समय के साथ-साथ
दौड़ना शुरू किया
समय को पीछे छोड़
मैं काफी आगे निकल गया
बीच रास्ते में
ठोकर लगी, मैं गिर पड़ा
सम्भला, उठा, और
फिर दौड़ने लगा
तब तक एक साया
तेज कदमों से दौड़ते हुए
मुझे पीछे कर
आगे निकल गया
मैंने अपनी चाल बढ़ाई
वह साया धुंधला-सा दिखा
मैंने पहचाना
वह समय था
जिसे मैं अभी तक
पीछे नहीं कर पाया
दौड़ना जब भी जारी है।