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"मुझे ही...! / असंगघोष" के अवतरणों में अंतर

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जाति
खेतों में पैदा नहीं हुई
घर के अन्दर-बाहर रखे
गमलों में नहीं खिली कभी
किसी पेड़ के फल से भी
पल्लवित नहीं हुई
ना ही किसी कारखाने में निर्मित हुई
यह बनी है
तुम्हारे ही बोये बबूल के काँटों की नोंक पर
बामन!
तुम्हारे ही स्वार्थ पूर्ति के लिए
यह हरदम
मुझे दंश मारती है
तुम नहीं काटोगे
अपने बोये बबूल
मुझे ही डालना होगा मट्ठा
तुम्हारी और इसकी जड़ों मे।