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"वल्दी कोरी की दफाई / असंगघोष" के अवतरणों में अंतर

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21:09, 13 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

गहराती खदान में
मैं उतरा जा रहा था
सिर पर प्लास्टिक का
टोपा पहने
जिसके सामने के
सिरे पर थी
एक जलती हुई टॉर्च
उसकी बैटरी को
मेरी कमर से
बाँध दिया था फोरमैन ने
घटाटोप अंधकार में
इसकी रोशनी के सहारे
मैं अपना रास्ता पकड़े
उतरता गया औरों के साथ
गहरे तक
और सुनता रहा
मैनेजर की आवाज
यह खदान है नंदन-2 औ
बगलवाली नंदन-1 है
दोनों कोयला खदानें
सैकड़ों लोगों को रोजगार दे रही हैं,
अकेला रोजगार ही क्या
ये तो दमुआ के सब घरों का
चूल्हा भी जलाती हैं दोनों समय,
कभी मिले एक गाड़ी कोयले से
या कभी चोरी से निकाल लिया
बन्द पड़ी खदान खोदकर
या आउटर पर खड़ी
गाड़ी के वैगन से ही भर ली बोरी
और जलाते रहे चूल्हा।

हमें ज्यादा नहीं चलना पड़ा पैदल
भीतर
कोयले,
लोहा या लकड़ी के
जगह-जगह पिलर खड़े थे
पहली बार देखा
खूंटे ठुके थे छत में,
खालिस लोहे के,
इन खूंटों से
किसे बाँधते होंगे
वो भी छत में।

मैंनेजर फिर बोला
हमारे ठीक ऊपर
कन्हान नदी बह रही है
हम नदी के नीचे हैं
वहाँ पानी की
टपकती बूँदों के अलावा
कुछ नहीं था
सिर के ऊपर,
कहाँ है नदी
जिसके नीचे हम हैं
अरे बह गई नदी!
अकस्मात
मन में जो टिकी थी
इन पिलरों के सहारे,
ठुके थे खूंटे नदी के पैंदे में,
यह सब टिकाए थे
नदी की तलहटी और बहती नदी
जैसे टिकी हो छत
घरों की गार्डर के सहारे,
दिखाई दिए बिना
नदी बह गई!
कितना अद्भुत था
नदी का इस तरह बह जाना!

अन्दर ही अन्दर
नदी के नीचे
काफी चलने पर
दिखे कोयला मजूर
खनन करते
वे सबके सब
मेरे जैसे ही कनटोपे पहने थे
कुछ खोद रहे थे
दीवार पर
कहीं गहरे दबी
अपनी रोटी
जो कहीं कोयले में दबी रही होगी कभी
जिन किन्हीं को मिली होगी
वे लाद रहे थे
कोयला ट्रॉली में
कुछ ढकेल रहे थे
मुई ट्रॉली को
मंथर गति से
चलते बेल्ट पर उड़ेलने
लादने वाले तमाम लोडर थे
जिन्हें वे लोग कहते थे
गोरखपुरिया,
जिनमें शामिल थे,
पासी, कोरी, चमार और जुलाहे
ऐसे ही कुछ गोरखपुरिया
रहते थे मेरे शहर के हिस्से
वल्दी कोरी की दफाई में
कभी यह रही होगी दफाई
अब पूरा एक मोहल्ला ही है
वल्दी कोरी की दफाई<ref>मेरे कस्बे का एक मोहल्ला जहाँ मजदूरों की गैंग रहा करती थी जिसका मुखिया निसंदेह वल्दी कोरी ही था!</ref>
जिसमें कभी रहते थे
कोरियों के अलावा चमार भी
फिर भी कहलातीथी
यह वल्दी कोरी की दफाई
वल्दी कोरी!
मुखिया था
एक छोटी-सी दफाई का
उसी के नाम पर हो गई
वल्दी कोरी की दफाई
जहाँ अब कोई गोरखपुरिया या
पासी, चमार और कोरी नहीं रहता
वे कब बेदखल हो गए नहीं पता
और
नंदन खदान भी अब बन्द हो गई है।

शब्दार्थ
<references/>