भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मैं दूँगा माकूल जवाब (कविता) / असंगघोष" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=असंगघोष |अनुवादक= |संग्रह=मैं दूँ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:51, 14 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
समय
माँगता है
मुझसे हिसाब
पढ़े क्यों नहीं!
नहीं है इसका जवाब
मेरे पास
तुमने अपनी वर्जनाओं से
काट ली थी मेरी जिह्वा
मेरे होंठ ही
सिल दिए थे
मेरे कानों में
पिघला हुआ शीशा भी
उड़ेल दिया था
मेरी आँखों में
गर्म सलाखें भी
तुम्हारे ही कहने पर
घुसेड़ी गईं
तुम्हारी इस करनी पर
मेरी धमनियों में
खौल रहा है, बहता लहू
समय के साथ
इसका
मैं दूँगा माकूल जवाब
मेरी जगह
पढ़ेंगे मेरे बच्चे
जरूर