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यह पहाड़
जो सामने खड़ा है
सब कहते हैं
काला है
सड़क किनारे लगे
बोर्ड पर भी
लिखा है
काला पहाड़
इस पहाड़ की
मिट्टी मुरम
और यहाँ तक
कि चट्टानें भी
काली नहीं हैं
फिर भी यह पहाड़
काला पहाड़ है
आस-पास के
रास्ते आते-जाते
सभी गाँवों के
लोग कहते हैं इसे
काला पहाड़
पहाड़ पर पेड़ भी
हरे ही हैं
सरई के पेड़ हैं
हरे तो रहेंगे ही
जिससे पहाड़ का
रंग भी
हरा है, भरा है
जब सब ओर हरियाली है
तो यह पहाड़ क्यों है
काला पहाड़
यहाँ तक कि
गजेटियर में भी
अंग्रेजी ने लिखा है
काला पहाड़
काला क्यों है?
किसी ने
कहीं नहीं लिखा
जितने लोग
उतनी बातें
कोई कहता राजा ने बताया
यह पहाड़ काला है
इसलिए काला है पहाड़
कोई दीवान का नाम लेता है
तो कोई बताता है
इस पहाड़ में
वास करती है बीमारी
और बीमारी इसमें
कहाँ वास करती है
इस प्रश्न पर
सब मौन हैं
फिर भी इसे कहते हैं
काला पहाड़
पहाड़ के नीचे
घासीराम का खेत है
वही घासीराम
हरी घास छीलता और
चौराहे पर बेचता था
जो, मर गया पिछले साल
शायद जानता रहा हो
कि यह पहाड़ क्यों है
काला पहाड़
वो जो बूढ़ा दढ़ियल
बस स्टेण्ड के सामने
महिलाओं के कपड़े पहन
रोड-डिवाइडर पर
दिनभर बैठा रहता है
जिसे कुछ भी याद नहीं
भूख को भूख
प्यास को प्यास नहीं
सिर्फ आँऊ-आँऊ कहता है
काला पहाड़ का नाम सुन
अपने चौड़े दाँत दिखा
लाफिंग बुद्धा की तरह
मुस्करा भर देता है
वो बूढ़ा इतना मोटा तो नहीं है
जितना लाफिंग बुद्धा
फिर भी शायद वो जानता है
यह रहस्य
काला पहाड़ है क्या
पर वो बोलता कुछ नहीं
मुस्कराते हुए
सिर्फ आँऊ-आँऊ कहता है
गाँव की सबसे बूढ़ी नानी
जिसे पता है
औरतों को क्यों नहीं
जाना चाहिए
काला पहाड़
वो सबको मना करती है
मत जाओ काला पहाड़
पर क्यों नहीं जाना
काला पहाड़
पूछने पर भी नहीं बताती
चुप्पी साध लेती है
जैसे कुछ जानती ही नहीं
पहाड़ काला क्यों है शायद
वह बताना ही नहीं चाहती
कहीं वो दढ़ियल बूढ़ा और
झुकी कमर वाली नानी
काला पहाड़ के रहस्य को
किसी दिन साथ लेकर ना चले जाएँ
अन्यथा यह पहाड़ रह जाएगा
हमेशा के लिए
काला पहाड़।