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"क्यों आते हैं सपने / असंगघोष" के अवतरणों में अंतर

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22:00, 14 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

सपनों पर
मेरा वश नहीं
क्यों आते हैं ये
बार-बार
मैं इनसे मुक्त हो
अपने पंख फैलाए
स्वछन्द आकाश में
परिन्दों की मानिंद
उड़ना चाहता हूँ
और
उड़ते हुए अंततः
विलीन हो जाना
चाहता हूँ
क्षितिज में
दृष्टि से परे
दिखाई देते
अनंत में
जहाँ
धरती आकाश के
मिलकर
एक हो जाने का भ्रम है
सपनों की तरह
उस भ्रम को
तोड़ते हुए
मैं धरातल पर
अपने पाँवों खड़ा
होना चाहता हूँ।