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दरख्तों के पार
सड़क किनारे
मरी पड़ी थी
गाय
जिसकी खाल उतार कर
लौट रहे थे
टेम्पो में/चमड़ा धरे
कुछ कर्मशील लोग
धर्मोन्माद से भरी
चिल्लाती भीड़ ने
उन्हें रास्ते में
रोक ही लिया
कुछ चीखे/और चिल्लाए भी
इन चमारों ने
गाय मार दी है
जिन्दा चीर कर
चमड़ा उतार लिया है
धर्मोन्मादियों द्वारा
जैसे
यह सब पूर्व नियोजित हो
भीड़ एकजुट हो
मार डालती है
इन दलितों को
ठीक दशहरे के दिन
रावण वधोत्सव मनाती है
भीड़
पुलिस के सामने
इस तरह
हथियारों की पूजा होती है
खून सने उन्माद के साथ
विजयदशमी को
इस बार
राम के नहीं
भक्तों के हाथों
एक और शंबूक-वध होता है
यह कोई वध नहीं
कह दिया जाता है
हमारी माँ को
मारने का
स्वाभाविक प्रतिशोध है
ठीक?
दशहरे के दिन!