भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रतीक-गीत / श्यामनन्दन किशोर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्यामनन्दन किशोर |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:29, 26 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
दर्द के तार पर गा रहा गीत मैं।
देखता है समय के नयन से विजन-
क्यों लुटाकर सुरभि है न रोता सुमन।
सृष्टि को दृष्टि दी लाभ की है नयी-
हार में ही सदा पा रहा जीत मैं।
तारकों के फफोले भुलाकर गगन,
है उषा के अधर पर विहँसता मगन!
वेदना प्रेरणा दे रही, इसलिए,
मानता हूँ मरण को सदा मीत मैं।
शून्य मंदिर, फटी मोह की यामिनी,
और प्रतिमा पुजारिन ठगी-सी बनी!
प्रेम की एक सीमा मिलन में सदा;
पर विरह का प्रणय कल्पनातीत मैं!
हँस रही पूर्णिमा क्यों लिये दाग है?
दीप से क्यों दिवा को न अनुराग है?
फूल की लालसा शूल पर चल रही,
प्रीत-पथ की न कोई नयी रीत मैं!
दर्द के तार पर गा रहा गीत मैं।
(14.4.53)