भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जब तुम नहीं / मोहिनी सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहिनी सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:36, 26 नवम्बर 2015 के समय का अवतरण
आज रात तुम नहीं
तो मेरे बिस्तर से उड़ कर गया चाँद
देखा मैंने आसमान को अलंकार बनते
तुम्हारी आवाज़ नहीं
तो घर के कोने में मैंने देखा
कोयल का एक पुराना घोंसला उगते
तुम हँसे नहीं दो दिन से
और फिसली पेड़ पर से गिलहरी
मैंने बजाई ताली, देखा उसे भगते
मैं छुई नहीं गई
तो मैंने छुआ हवा को
फिर छुआ , फिर देखा उसे सरकते
टोह ली है सबने मेरी तन्हाई
कि देखा मैंने सबको तमाशा करते
तुम्हें भुलाते,तुम्हें याद दिलाते
तुम नहीं तो
उँगली पकड़ के ख्यालों से ख्वाबों में ले जाते
देखा मैंने कविता को आते