भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कैसो ये देश निगोरा / ब्रजभाषा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=ब्रजभाष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:43, 27 नवम्बर 2015 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कैसो ये देश निगोरा, जगत होरी ब्रज होरा॥
मैं जमुना जल भरन जात ही, देखि रूप मेरौ गोरा।
मोते कहें चलौ कुंजन में, तनक-तनक से छोरा॥
परे आंखिन में डोरा। कैसौ.

जियरा देखि डरानौ री सजनी, लाज शरम की ओरा
कहाँ बालक, कहाँ लोग लुगाई, एक ते एक ठिठोरा॥
काहू सों काहू कौ जोरा॥ कैसौ.

निपट निडर नन्दकौ री सजनी, चलत लगावत चोरा
कहत ‘गुमान’ सिखाय सखन मेरौ, सिगरौ अंग टटोरा
न मानत करत निहोरा॥ केसौ.