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   ♦   रचनाकार: सूरदास

वृन्दावन श्याम मची होरी। टेक
बाजत ताल मृदंग झांझ ढप, बरसत रंग उड़त रोरी॥
कित ते आये कुंवर कन्हैंया, कितते आई राधा गोरी।
गोकुल ते आये कुँवर कन्हैंया, बरसाने सेस राधा गोरी॥
कौन के हाथ कनक पिचकारी, कौन के हाथ अबीर झोरी।
कृष्ण के हाथ कनक पिचकारी, राधा के हाथ अबीर झोरी॥
अबीर गुलाल की धूम मची है, फेंकत है भरि-भरि झोरी।
‘सूरदास’ छबि देख मगन भये, राधेश्याम जुगल जोरी॥