भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रात बीती प्रतीक्षा की / जनार्दन राय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जनार्दन राय |अनुवादक= |संग्रह=प्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:58, 27 नवम्बर 2015 के समय का अवतरण

रात बीती प्रतीक्षा की मिलन का यह प्रात आया।
लूट लो सब रत्न खुशियों के जो इसने साथ लाया।

भूल जा वे क्षण सभी जिसमें तुम्हारे गम पले थे,
भूल जा वे पल सभी जब कि विरह में तुम जले थे।
आ उषा ने सब सुखद तेरे लिए सम्वाद लाया,
लूट लो सब रत्न खुशियों के जो इसने साथ लाया।

रो चुके तुम तो बहुत, आओ जरा कुछ मुस्कुरा लो,
खो चुके तुम तो बहुत आओ यहाँ कुछ तो बना लो।
आ यहाँ पीली प्रभा ने स्वर्ण किरणों को सजाया,
लूट लो सब रत्न खुशियों के जो इसने साथ लाया।

लात मारो उस जहाँ को, जहाँ केवल द्वेष पलता,
दो मिटा उस नरक को जिसमें मनुज है हाथ मलता।
गा प्रभाती राग जो प्यारी सुबह ने है सिखाया,
लूट लो सब रत्न खुशियों के जो इसने साथ लाया।

अमृत फल की कामना में सींचते जिसको रहे हो,
जहर क्या देता नहीं वह पूजते जिसको रहे हो?
पी लो अघा रस आज जीभर प्रात ने भर थाल लाया,
लूट लो सब रत्न खुशियों के जो इसने साथ लाया।

तोड़ दो दीवाल दुश्मन ने वतन पर जो बनायी,
दो बुझा वह आग बुजदिल ने यहाँ जो है लगायी।
दीप वह बुझने न देना गहन तम जिसने मिटाया,
लूट लो सब रत्न खुशियों के जो इसने साथ लाया।

लो बसा दुनियाँ नयी नूतन समाज यहाँ बना लो,
ढूंढ़ कर इन्सान सारे स्वर्ग को भू पर बसा लो।
मिटा मन की मलिनता गा गीत कोयल ने सिखाया,
लूट लो सब रत्न खुशियों के जो इसने साथ लाया।

भूल जा नेता तेरा, सरकार तेरी कुछ करेगी,
बात पर मीठी सुना तुमसे सदावह छल करेगी।
पाठ पढ़ कर्त्तव्य का रवि ने सदा जो है पढ़ाया,
लूट लो सब रत्न खुशियों के जो इसने साथ लाया।

रात बीती प्रतीक्षा की मिलन का यह प्रात आया,
लूट लो सब रत्न खुशियों के जो इसने साथ लाया।

-समर्था,
13.12.1987 ई.