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बीत गया वर्ष पुराना ये तुम्हारा,
आया नव वर्ष लिये हर्ष तुम्हारा।
घटने न पाये उत्कर्ष तुम्हारा,
कहने को आया नव वर्ष तुम्हारा।
भूलो न घट गयी है उम्र तुम्हारी,
बढ़ गई है तेरी बहुत जिम्मेवारी।
लूटे न देखो संसार तुम्हारा,
देता सन्देश नया वर्ष तुम्हारा।
भारत है आरत बन चिल्ला रहा,
दुश्मन तुम्हारा है मंडरा रहा।
विगरे न देखो संसार तुम्हारा,
देता सन्देश नया वर्ष तुम्हारा।
लूट-पाट का बाजार गर्म हो रहा,
इज्जत बचाने का ठौर न रहा।
खौलेगा बोलो कब खून तुम्हारा?
पूछ रहा आके नया वर्ष तुम्हारा
एक नहीं लाखों द्रुपदा हैं रो रही,
खोल खड़ी केश है विलाप कर रही।
ढूंढ़ो है छिपा कहाँ कृष्ण तुम्हारा,
कह रहा है आके नया वर्ष तुम्हारा।
शब्दों के जाल में न फंसना कभी,
मायावी नेता, सरकार है अभी।
वैसा ही बन रहा समाज तुम्हारा,
सावधान करता नव वर्ष तुम्हारा।
तौलो निज बाहु बल, पराक्रम अपना,
सत्य को बापू का जो था सपना।
कामयाबी चूमेगी चरण तुम्हारा,
बार-बार कहता नव वर्ष तुम्हारा।
काम, क्रोध, लोभ का शिकार न बनो,
माया और मोह का गुलाम न बनो।
होगा सहाय सदा ईश तुम्हारा,
मन्त्र यही देता नव वर्ष तुम्हारा।
-डुमरिया खुर्द,
1.1.1987 ई.