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अगणित दीप जलाकर गाओ,
मन का सुन्दर गान।
अपने प्राण गंवाकर भी,
रक्खो भारत का मान।
मधुर-मधुर दीपक जलता है,
दे प्रकाश का दान।
प्रेरित करता आज मनुज को,
गाने जय का गान।
उठो हिन्द के वीर सपूतो,
रक्खो माँ की शान।
पा आलोक दीप से सीखो,
जल जाने की आन।
दीवाली का दीप कर रहा,
है सबका आह्वान।
उठो आज मर्दन कर दो,
सब चीन-पाक का मान।
करो आज हुंकार डुबाने,
जॉनसन, विलसन का जलयान।
और चरण पर झुके हिन्द के,
अफ्रीका, ब्रटन-सन्तान।
दीप-ज्योति से ग्रहण करो,
उत्साह हिन्द के देव-किसान।
उपजाओ धरती को, भर दो,
अन्न-धान से खट जी जान।
दान दिया था हमने जग को,
धर्म, कर्म, दर्शन, विज्ञान।
आज सीख ले युद्ध-कला का,
उन्मादी मद मरत जहान।
दीवाली की रात माँग ले,
लक्ष्मी से माँ हित वरदान।
दीप-ज्ञान आलोक मिला,
क्या टिक पायेगा रिपु नादान।
भेद-भाव भूलो भारत के,
हिन्दू हो या मुसलमान।
सब मिल जोड़ लगालो,
कर लो प्रजातंत्र का सब मिल त्राण।
-दिघवारा,
27.10.1965 ई.