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चार दिन के जिनगी मनखे
दया-मया गोठियालव रे
अइसन भाखा बोलव रे संगी
जिनगी सबके हरियावय रे
साज सिंगार ए ठाट –बाट सब
जीयत भर के फाँदा ए
तोर मोर के झगरा टंटा
लालच के सब फाँदा ए
जब तक ले ए साँसा चलही
मया पीरित बागरावव रे
अइसन भाखा बोलव रे संगी
जिनगी सबके हरियावय रे
आज मिले अऊ काली भुलाए
मनखे के चरित्तर ए
तप तियाग अऊ दान पुन्न हर
जिनगी के सुमित्तर ए
जब तक गंगा मा पबरित पानी
भाग अपन सहरावव रे
अइसन भाखा बोलव रे संगी
जिनगी सबके हरियावय रे