भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गूँज / हेमन्त कुकरेती" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त कुकरेती |संग्रह=चाँद पर ना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:14, 17 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
गाँव की पगडण्डी से
दिख रही है
एक हाँफती-हुई नदी
चीड़ चुप हैं
उनकी पीली पत्तियों पर फिसलकर
मैं पहुँच गया हूँ
अपने बचपन में
वहाँ खलिहानों में
अन्न की खुशबू बची है
चलते हुए आदमी को
टूटे हुए हल में बदलते देख
अभी टूटी है मेरी नींद
खेतों में अँधेरा पक रहा है
और जल रहे हैं पेड़
चिड़िया चीख रही है
-‘पानी’
रेत झर रही है
उसकी चोंचसे
रास्ता भूली हवा
रेतीले सूरज की आँखें
खोले बगै़र
लौट रही है अपने शाप में
सिर्फ़ धूल उड़ रही है
सुनाई नहीं दे रहीं
वहाँ रेंगती गीली आवाजे़ं