भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जब मैं खुश हुआ / हेमन्त कुकरेती" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त कुकरेती |संग्रह=चाँद पर ना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:40, 17 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
जब मैं ख़ुश हुआ
मैंने सूरज को
दिनभर की कै़द से
आज़ाद कर दिया
सप्तर्षियों का मुँह तकती
हिरनियों को
मैंने बता दिया
कस्तूरी का पता
चाँद पर ऊँघती बुढ़िया को
मैंने गिनकर दीं
पूरी इकतीस पृथ्वियाँ
प्यासी सीप में
मैंने चुआया अपनी तर्जनी का
एक बूँद खून
मैंने बादल का चेहरा चूमा
और आकाश पर लिखा एक नाम
डूबने से डरे बगै़र
बारिश में तैरायी यादों की नाव
अपनी खाल से बुना
मैंने रातरानी के लिए स्वेटर
नाखूनों की सुई बनाकर
ओस के लिए गठे एक जोड़ी जूते
मैं जब ख़ुश हुआ
मैंने टटोले आँसुओं के सिक्के
मैं हँसा कि
गिरी नहीं उनकी क़ीमत!