भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सिलबट्टा / हेमन्त कुकरेती" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त कुकरेती |संग्रह=चाँद पर ना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:40, 17 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

जाने कहाँ की सभ्यता से निकला है वह
पत्थर नहीं है वह केवल
एक दुनिया है उसकी
और हमारी रसोई में वह सबसे पुरानी धरती है
जिस पर सबसे पहली माँ जीवन के स्वाद को बढ़ाने के लिए
पीस रही है प्राचीन वनस्पतियाँ

क्या वह पूजा-कथाओं का कोई देवता है ऐसा
जिस पर नहीं लगाना पड़ता हल्दी-चावल का तिलक
न उसे प्रसन्न करने के लिए पढ़नी पढ़ती है कोई आदि कविता
उदास लगता है वह
एक कोने पर पड़ा हुआ सुनता है मशीन का रौरव
जिसमें बाहर निकलने पर मसाले अपने रस से छिटक जाते हैं

परिवार के इस बुजुर्ग से समय मिलने पर ही
हो पाती है बातचीत
और समय कितना कम है हमारे समय में
हमारी नसों में बसे नमक और बहते हुए खू़न में
उसका भी अंश है
हर दाने के साथ हमारे भीतर प्रवेश करता है
उसके कई घर हैं कई द्वार कई खिड़कियाँ
कई चेहरे हैं उसके

कई सदियों से जीवित है वह
जैसे पेड़ हर वर्ष अपने तने में बढ़ा लेते हैं एक वृत्त
वह हर बार हमारे लिए लेता है जन्म
उसकी कई कहानियाँ हैं अनेक संस्मरण

किसे याद करें जो भुला दिया हो
कुछ भी नहीं है ऐसा
कि दूर ही नहीं हुआ वह कभी हमारे जीवकोषों से
वह पुरखा है हमारा जो कई-कई सदियों से हममें बसा है।