भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सड़क की छाती पर चिपकी ज़िन्दगी ९ / शैलजा पाठक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मैं ए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=शैलजा पाठक
 
|रचनाकार=शैलजा पाठक
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
+
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी / शैलजा पाठक
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

15:16, 21 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

सूखे पत्तों सी
चरमरा रही
धरती
हरा हार गया

एक कुआं भागता है
गांव के रास्ते पर
Œप्यास पीछा करती है

समय से पहले मरे पेड़ों की
चिता पर
कुछ भूख सिकती है।