भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख़ुदा की तारीफ़ / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:12, 30 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

ख़ुदा की ज़ात<ref>हक़ीकत</ref> है वह जुलजलाल<ref>आदर के योग्य</ref> वल इकराम<ref>श्रेष्ठ सम्मान योग्य</ref>।
कि जिससे होते हैं परवर्दा<ref>पाला हुआ</ref> सब ख़वासो<ref>खास</ref> अवाम<ref>आम लोग। ख़वासो अवाम-साधारण-असाधारण सभी व्यक्ति</ref>।
उसी ने अर्ज़ो<ref>पृथ्वी</ref> समावात<ref>बहुत से आस्मान</ref> को दिया है निज़ाम<ref>प्रबंध</ref>।
उसी की जात को है दायमो<ref>हमेशा</ref> सबातो<ref>दृढ़ता</ref> क़याम<ref>स्थिरता</ref>॥
क़दीर<ref>सर्वशक्तिमान्</ref> वहदो<ref>अल्लाह</ref> करीमो<ref>कृपालु</ref> मुहीमिनो<ref>महरबान</ref> अनआम<ref>दान देने वाला</ref>॥

फ़लक<ref>आस्मान</ref> पै तारों की क्या क्या मुरस्सा<ref>जड़ाई</ref> कारी की।
फिर उनमें जे़बफ़िजा<ref>सुन्दरता बढ़ाने वाली</ref> कहकशां<ref>आकाश गंगा</ref> निगारी<ref>जड़ाई</ref> की।
ज़ियाओ<ref>रोशनी</ref> नूर की क्या क्या तजल्ली<ref>रोशनी</ref> बारी की।
बुरूज<ref>बारह राशियां</ref> बारह में लाकर रखी वह बारीकी।
कि जिसको पहुंचे न फ़िकरत<ref>सोच</ref> न दानिशो<ref>अक्ल</ref> औहाम<ref>भ्रान्तियां, मुगालते</ref>॥
बनाई कुर्सियो<ref>आठवां आस्मान</ref> अर्श<ref>आस्मान</ref> और ला मकां दर<ref>दरवाज़ा</ref> आं।
फिर और सदरए रफ़रफ़<ref>तेज घोड़ा, बुर्राक़</ref> से दर्ज<ref>भरपूर</ref> नारो<ref>आग</ref> जिना<ref>जिन्न</ref>।
तहूरो<ref>पवित्र</ref> हूरो<ref>सुन्दर स्त्रियां</ref> क़ुसूरो<ref>बहुत से महल</ref> मलायको<ref>फरिश्ते</ref> रिज़वां<ref>जन्नत का दारोगा</ref>।
इधर फ़रिश्तए कबी<ref>फरिश्ता देवता</ref> और हैं उधर गुलमां<ref>स्वर्ग के बालक</ref>।
कलम की लौह<ref>तख़्ती</ref> पै बख्शी है ताक़ते अरक़ाम<ref>लेखन</ref>॥3॥

सवाबित<ref>भ्रमणशील सितारे</ref> उसने बनाये हैं इस क़दर सैयार<ref>घूमने वाले</ref>।
कि रोजे़ हण्र<ref>क़यामत</ref> तलक हो सके न जिनका शुमार।
मगर यह नाम है उनके जो सात हैं सैय्यार<ref>भ्रमणशील सितारे</ref>।
यह दो हैं शम्सो क़मर, और साथ उनके यार।
अतारु ओ-जहलो, ज़ोहरा, मुश्तरी बहराम॥4॥

हुआ है हुक्म अज़ल<ref>शुरू से</ref> से जो उनको फिरने का।
करेंगे दौर<ref>दौड़ा</ref> यह हमराह<ref>साथ</ref> आस्मां के सदा।
क़वी<ref>दृढ़, मजबूत</ref> किसी का कहां हुक्म हो सके ऐसा।
जो चाहें एक पलक ठहरें यह, सो ताक़त क्या।
फिरा करेंगे यह आग़ाज<ref>शुरुआत</ref> से ले ता अनजाम<ref>अन्त</ref>॥5॥

जो कुछ है उसने बनाया यह कुल निहानी<ref>छिपा हुआ</ref> अयां<ref>ज़ाहिर</ref>।
उसी की सनअतो<ref>कारीगरी</ref> कु़दरत के हैं यह सब शायां<ref>लायक</ref>।
हैं ऐसे ऐसे मकां और उसके बेपायां<ref>असीम</ref>
बशर<ref>व्यक्ति</ref> जो चाहे सो समझे उन्हें है क्या इमक़ां<ref>उम्मीद</ref>।
है यां फ़रिश्तों की आजिज़ उकू़ल<ref>बुद्धियां</ref> और अफ़हाम<ref>बुद्धि</ref>॥6॥

जमीं को देखो तो कुल आब<ref>पानी</ref> पर दिया है क़रार<ref>स्थिरता</ref>।
फिर उसमें और बनये हैं कोहो<ref>पहाड़</ref> बर्रो<ref>द्वीप</ref> बहार।
किया है और नबातात<ref>पेड़-पौधे</ref> के तईं इजहार।
निकाले उनसे गुलो<ref>फूल</ref> मेवा शाख़<ref>टहनी</ref> गुल और बार<ref>पेड़ के फल, मेवा</ref>।
सब उसके लुत्फ़ो करम<ref>दया</ref> के हैं आम यह इनआम॥7॥

उसी के हुक्म से हम इस जहां में आते हैं।
जुबानो, अक़्लो खि़रद चश्मो<ref>आँख</ref> गोश<ref>कान</ref> पाते हैं।
उसी के तुल्फ़ से फूले नहीं समाते हैं।
उसी के बाग़ से दिलशाद<ref>खुश</ref> होके खाते हैं।
छुहारे व किशमिशी इनजीरो पिस्तओ बादाम॥8॥

वही है ख़ालिक़ो<ref>पैदा करने वाला</ref> राज़िक<ref>खाना देने वाला</ref> वही रऊफ़ो<ref>अत्यन्त दयालु</ref> गफू़र<ref>गुनाहों को माफ करने वाला</ref>।
उसी के मेहर से पलते हैं इन्सां<ref>इंसान, व्यक्ति</ref> वहशो<ref>जंगली जानवर</ref> तयूर<ref>परिन्दे</ref>।
उसी के हुक्म से ख़लक़त<ref>दुनिया</ref> का यां हुआ है ज़हूर<ref>जाहिर होना</ref>।
चमक रहा है उसी की यह कु़दरती का नूर।
बहर ज़मानो<ref>वक्त, ज़माना</ref> बहर साअतो<ref>क्षण, समय</ref> बहर हंगाम<ref>समय, मौसम</ref>॥9॥

उसी ने हुक्म किया है हमें इबादत का।
उसी ने ताअतो<ref>बन्दगी</ref> तक़वा<ref>संयम</ref> का हुक्म हमको दिया।
जो ग़ौर की तो हमारा भी है इसी में भला।
कि उसका शुक्र करें शब<ref>रात</ref> से ता बरोज<ref>दिन तक</ref> अदा<ref>अदा करना</ref>।
इताअत<ref>बंदिगी</ref> उसकी बज़ा लावें सुबह से ता शाम॥10॥

जो उसमें लुत्फो इनायत है कब-किसी में हो।
हर इक तरफ़ है उसी के गुले करम<ref>बख्शिश</ref> की बू<ref>खुशबू, गन्ध</ref>।
इबादत उसकी है जो हो वेदिल की खू़<ref>आदत</ref>।
”नज़ीर“ नुक्ता<ref>रहस्य</ref> समझ मेहरो फ़ज़्ल ख़ालिक को।
उसी के फ़ज़्ल से दोनों जहां में है आराम॥11॥

शब्दार्थ
<references/>