"मन्क़बत हज़रत अली / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर
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अली की याद में रहना इबादत<ref>पूजा</ref> इसको कहते हैं।
अली का बस्फ़<ref>खूबी या गुण</ref> कुछ कहना सआदत<ref>नेकी</ref> इसको कहते हैं।
अली की मदह<ref>प्रशंसा</ref> का पढ़ना करामत<ref>चमत्कार</ref> इसको कहते हैं।
अली के नाम का लेना हलावत<ref>मिठाई, मिठास</ref> इसको कहते हैं।
अली की हुब<ref>प्रेम</ref> में कर जाना शहादत<ref>ईश्वर के मार्ग पर बलिदान होना</ref> इसको कहते हैं॥1॥
उसी को सर झुका सजदा किया खु़र्शीदे<ref>सूरज</ref> अनवर<ref>बहुत चमकदार</ref> ने।
उसी को लाफ़ता<ref>अविजयी</ref> हर दम कहा अल्लाहो अकबर ने।
उसी को लहमके लहमी<ref>तेरा गोश्त पोश्त मेरा गोश्त पोश्त है यह ह. मुहम्मद साहब ने कहा</ref> कहा जाने पयम्बर<ref>ईश्वर का आदेश लाने वाले हज़रत</ref> ने।
उसी को दम्मकोदम्मी<ref>तेरा खून और जीवन मेरा खून और जीवन है, यह ह. मुहम्मद साहब ने कहा</ref> कहा उस शाहे बरतर ने।
खु़दाओ मुस्तफ़ा<ref>हज़रत मुहम्मद</ref> से हम क़राबत<ref>क़रीब होना</ref> इसको कहते हैं॥2॥
किया मौला<ref>हज़रत अली</ref> से मेरे गर किसी ने एक सवाल आकर।
जो मांगा एक शुतर<ref>ऊंट</ref> उसको दिलाये सैकड़ों उश्तर<ref>बहुत से ऊंट</ref>।
अगर कुछ ज़र<ref>दौलत</ref> की ख़्वाहिश<ref>इच्छा</ref> की तो बख़्शे इस क़दर गौहर<ref>मोती</ref>।
कि उसका घर भरा और उसके हमसायों<ref>पड़ोसियों</ref> का घर बाहर।
करीमो<ref>दान देने वाला</ref> अहले हिम्मत<ref>बहादुर</ref> में सख़ावत<ref>दान देना</ref> इसको कहते हैं॥3॥
अमीरुलमोमिनी<ref>मुसलमानों के सरदार</ref> गर<ref>अगर</ref> दश्त<ref>जंगल</ref> में पढ़ने नमाज आवें।
वहीं क़ामत<ref>नमाज से पूर्व तकबीर कहना</ref> के कहने के लिये जिव्रील<ref>वही लाने वाला फ़रिश्ता</ref> आ जावें।
सफ़े<ref>कतार</ref> हूरों<ref>सुन्दरियां, जन्नत की</ref> मलक<ref>फरिश्ता</ref> गिल्मांओ<ref>स्वर्ग के बालक</ref> जिन्नो<ref>जिन्नात</ref> इंन्स<ref>मनुष्य</ref> की लावें।
मेरा मौला<ref>खुदा</ref> हर एक सिजदे<ref>खुदा के आगे सर ज़मीन पर रखना</ref> में वस्ले हक़<ref>खुदा से भेंट</ref> ही दिखलावें।
नबुब्बत<ref>ईश्वर दूत होने के</ref> के जो मालिक हैं इमामत<ref>रहबरी</ref> इसको कहते हैं॥4॥
उसी ने एक हमले से गिराया बाब<ref>दरवाजा</ref> ख़ैबर का।
करोड़ों काफ़िरों<ref>खुदा को न मानने वाला</ref> से जा लड़ा वह एक तन तनहा<ref>अकेला</ref>।
चहे<ref>कुंआ</ref> बीरुलअलम<ref>कुंए का नाम</ref> में कूद<ref>पहुँचकर</ref> कर देवों को जा मारा।
हजारों पहलवानों से कभी अपना न मुंह मोड़ा।
बहादुर बेबदल<ref>अनुपम</ref> यकता<ref>अकेला</ref> शुजाअत<ref>बहादुरी</ref> इसको कहते हैं॥5॥
कहा उस शाह ने रोजे क़यामत<ref>कयामत के दिन</ref> मैं जो आऊंगा।
वहां अरसात<ref>कयामत</ref> में अपने मुहिब्बों<ref>चाहने वालो</ref> को जो पाऊंगा।
खड़ा हो अर्श<ref>तख़्त, ख़ुदा का</ref> के आगे सभों को बख़्शवाऊंगा।
पिला कर जामे कौसर<ref>स्वर्ग के हौज के पानी का प्याला</ref> सबको जन्नत पहुंचवाऊंगा।
अली के दोस्तों सुन लो शफ़ाअत<ref>सिफ़ारिश</ref> इसको कहते हैं॥6॥
”नज़ीर“ आवे वह दिन जो शाह को सब दोस्तां देखें।
तो फिर हसनैन<ref>हज़रत हसन और हुसैन</ref> के सदक़े<ref>ईश्वर के नाम पर जो गरीबों को दें</ref> से उनको हम भी वां देखें।
और अब दुनियां में आंखों से नजफ़ का आस्तां<ref>चौखट</ref> देखें।
सरों पर अपने वह दामाने आली<ref>बड़े आंचल</ref> सायबां<ref>सायवान, धूप से बचाने के लिए छाजन</ref> देखें।
क़सम ईमान की हम ऐन राहत<ref>ख़ास आराम</ref> इसको कहते हैं॥7॥