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"मन्क़बत दर शाने अमीरुलमोमिनीन / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

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करूं क्या वस्फ़<ref>गुण</ref> मैं उनका अलमनाक<ref>खेदजनक</ref>।
कि जिनकी शान में आया है लौलाक<ref>मुहम्मद साहब की उपयोगिता दर्शाने हेतु प्रयुक्त शब्द</ref>।
फिरा जो अर्श<ref>आसमान</ref> और कुर्सी<ref>बैठने की जगह</ref> पै चालाक।
कहां वह और कहां मेरा यह इदराक<ref>बुद्धि</ref>
चः निस्बत ख़ाक रा बा आलमे पाक<ref>इस मिट्टी को आलमे पाक से क्या ताल्लुक। ख़ाक ख़ाक है आस्मां आस्मां है</ref>॥1॥

मुहम्मद रहमतुललिलआलमी<ref>सृष्टि पर दया करने वाले</ref> हैं।
हबीबे हक़ शफ़ीउलमुजनबी<ref>संसार को मोक्ष</ref> हैं।
रसूले पाक ख़तमुल मुरसली<ref>आखिरी रसूल, ईश्वर के संदेश लाने वाले</ref> हैं।
कोई ऐसाा खु़दाई में नहीं है।
लगा तहतस्सरा<ref>पाताल</ref> से ता ब<ref>तक</ref> अफ़लाक<ref>आसमान</ref>॥2॥

मुहम्मद और अली याकू़ते<ref>एक रत्न</ref> अहमर<ref>सुर्ख, लाल</ref>।
दुरे<ref>बड़ा मोती</ref> बहरे ख़ुदा ख़ातूने अतहर<ref>पवित्र</ref>।
ज़मर्रूद<ref>हरे रंग का रत्न, पन्ना</ref> लाल हैं शब्बीरों<ref>हज़रत हुसन काा नाम</ref> शब्बर<ref>हज़रत हसन का नाम था</ref>।
जवाहर ख़ानऐ कु़दरत<ref>प्रकृति</ref> के अन्दर।
यही पांचों गुहर<ref>मोती</ref> है पंज तन पाक॥3॥

उन्हीं के वास्ते ख़ुल्दे अदन<ref>जन्नत के बाग</ref> है।
उन्हीं के वास्ते नहरे लबन<ref>दूध की नहर</ref> है।
बहिश्ती हुल्ला<ref>स्वर्गीय लिबास</ref> और उनका बदन है।
सदा शेरे बहिश्त और सायए पाक<ref>पवित्र</ref>॥4॥

जिसे उनकी मुहब्बत पल ब पल है।
उसी को दीन और दुनिया का फल है।
जो कोई उनकी उल्फ़त में दग़ल<ref>खोटा</ref> है।
तो उस मुरतिद की यारो यह मिसल<ref>मिसाल</ref> है।
कि जैसे लेबे तूबा बेच कर ढाक॥5॥

अली जो शहसवारे लाफ़ता है।
अमीरुलमोमिनी<ref>मुसलमानों का सरदार</ref> शेरे खु़दा है।
फ़लक हैबत<ref>डर</ref> से उसकी कांपता है।
अली जो सफ़दरे<ref>फ़ौज की पंक्ति को फाड़ने वाला</ref> रोजे़ बग़ा है।
कि जिसकी शर्क़<ref>सूरज के निकलने की जगह</ref> से है ग़र्ब<ref>सूरज के छिपने की जगह</ref> तक धाक॥6॥

अली है क़ातिले<ref>कत्ल करने वाला</ref> कुफ़्फारे<ref>कई ईश्वरों को मानने वाला</ref> गुमराह<ref>राह से भटके हुए</ref>।
अली का हुक्म है माही<ref>मछली</ref> से ता माह<ref>चांद</ref>।
नबी का कु़ब्बते बाजू<ref>भुजाओं की शक्ति</ref> यदुल्लाह।
उठावे चर्ख़<ref>आसमान</ref> की गर्दिश<ref>दौड़ क्रम-चक्र</ref> तो वल्लाह।
अभी थम जाये दम से चर्ख़<ref>आसमान</ref> का चाक॥7॥

अली ने महद<ref>पालना</ref> में चीरा है अज़दर<ref>अज़दहा, बहुत बड़ा सांप</ref>।
अली ने काट डाले उमरो<ref>उमर</ref> अन्तर<ref>अन्तर, अमर, अन्तर नामक दो पहलवान</ref>।
उलट डाला है एक हमले से खैबर।
ख़वास<ref>गुण</ref> अशया<ref>चीजे़</ref> का फेरे गर वह सरवर<ref>सरदार</ref>।
तो हो तिर्याक़<ref>ज़हर को नष्ट करने वाला</ref> ज़हर और ज़हर तिर्याक़<ref>ज़हर को नष्ट करने वाला</ref>॥8॥

अली को मुस्तफ़ा<ref>हज़रत मुहम्मद साहब</ref> ने जी<ref>जिन्दगी, जीवन</ref> कहा है।
अली को जिस्मके जिस्मी<ref>ऐ अली तेरा जिस्म मेरा जिस्म है</ref> कहा है।
अली को लहमके लहमी<ref>तेरा गोश्त पोश्त मेरा गोश्त पोश्त है</ref> कहा है।
अली को रूहके<ref>तेरी रूह मेरी रूह है</ref> रूही कहा है।
यह समझे वह ख़ुदा दे जिसको इद्राक<ref>समझ बूझ</ref>॥9॥

अली को ख़ास निस्बत<ref>वास्ता, सम्बन्ध</ref> है नबी<ref>हज़रत मुहम्मद साहब</ref> से है।
नबी को राह दिल में है अली से।
वह दोनों एक तन और एक जी से।
किसी को ताब<ref>ताकत</ref> क्या गैर अज़ अली से।
जो पहने मुस्तफ़ा<ref>हज़रत मुहम्मद साहब</ref> के तन की पोशाक॥10॥

अली को जो कोई पहचानता है।
बराबर मुस्तफ़ा के मानता है।
जो इनमें कुछ तफ़ावुत<ref>दूरी</ref> जानता है।
वह अपने ख़ाक सर पर छानता है।
लगाई उसने दोजख़<ref>नरक</ref> की मगर ताक<ref>दृष्टि डालना</ref>॥11॥

अली की दोस्ती में जो मरेगा।
उसी को बाग़ जन्नत का मिलेगा।
अली के बुग्ज़<ref>द्वेष</ref> में जो जान देगा।
वह मलउन<ref>तिरस्कृत</ref> दोजख़ अन्दर यों जलेगा।
कि जैसे आग पर जलता है ख़ाशाक<ref>कूड़ा करकट</ref>॥12॥

जिसे वस्फ़े<ref>प्रशंसा</ref> अली कुछ सालता है।
उसी को दोजख़ आखि़र ढालता है।
जो उनका बुग्ज दिल में पालता है।
गोया भर कर के डलियां डालता है।
वह अपने दीन और ईमान में ख़ाक॥13॥

शब्दार्थ
<references/>