"तवक्कुल / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर
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ऐ दिल! कहीं तू जाके न अपनी जुबां हिलाये।
और दर्द अपने दिल का किसी को तू मत सुनाये॥
मांग उससे जिसके हाथ से तू पेट भरके खाये।
मशहूर यह मसल<ref>कहावत, लोकोक्ति</ref> है कहूं क्या मैं तुझसे हाये॥
गैर अज़<ref>ईश्वर के अतिरिक्त</ref> खु़दा के किस में है कु़दरत जो हाथ उठाये?
मक़दूर<ref>शक्ति</ref> क्या किसी का, वही दे वही दिलाये॥1॥
क़ादिर<ref>कुदरतवाला, ताकत रखने वाला</ref>, क़दीर<ref>ताक़तवर, कुदरतवाला</ref> ख़ालिक़ो<ref>पैदा करने वाला</ref> हाकिम हकीम है।
मालिक, खालिक<ref>सृष्टिकर्ता</ref> हैय्यो<ref>खु़दा का नाम</ref> तवाना<ref>शक्तिशाली</ref> क़दीम<ref>अनादि, बहुत पुरने ज़माने का</ref> है॥
दोनों जहां से जात उसी की क़रीम है॥
यानी उसी का नाम ग़फूरुर्रहीम<ref>क्षमावान, बख्शने वाला ईश्वर</ref> है॥
गैर अज़ खु़दा के किस में है कु़दरत जो हाथ उठाये?
मक़दूर क्या किसी का, वही दे वही दिलाये॥2॥
सत्तार<ref>दोष छिपाने वाला, ईश्वर</ref> जुलजलाल<ref>तेज और प्रताप वाला, ईश्वर</ref> ख़ुदावंद<ref>मालिक, स्वामी, ईश्वर</ref>, किर्दगार<ref>सर्व-शक्तिमान, ईश्वर</ref>।
रज़्ज़ाक<ref>अन्नदाता, ईश्वर</ref> कारसाज, मददगार, दोस्तगार॥
इंसान, देव जिनो परी, फ़ीलो मोरो मार।
जारी उसी के हाथ से हैं सब के कारोबार॥
गैर अज़ खु़दा के किस में है कु़दरत जो हाथ उठाये।
मक़दूर क्या किसी का, वही दे वही दिलाये॥3॥
कहने के तई अगरचे,वह बे नियाज़<ref>जिसे कुछ लेने की इच्छा न हो</ref> है।
पर सब नियाज मंदों<ref>आज्ञाकारी, भक्त</ref> को उस पर ही नाज़ है॥
जितने हैं बन्दे सबका वह बन्दा नवाज है॥
जितनी है ख़ल्क, सबका वही कारसाज़ है॥
गैर अज़ खु़दा के किस में है कु़दरत जो हाथ उठाये।
मक़दूर क्या किसी का, वही दे वही दिलाये॥4॥
अहले जहां<ref>दुनियां में रहने वाले</ref> हैं जितने, तू इन सबका छोड़ साथ।
ने पांव पड़ किसी के, तू ऐ दिल, न जोड़ हाथ॥
दो हाथ वाले जितने हैं, इन सबसे मोड़ हाथ।
उससे ही मांग, जिसके हैं, अब सौ करोड़ हाथ॥
गैर अज़ खु़दा के किस में है कु़दरत जो हाथ उठाये।
मक़दूर क्या किसी का, वही दे वही दिलाये॥5॥
उसके सिवा किसी के कने<ref>पास</ref> गर जू जायेगा।
इस आबरू को अपनी, तू नाहक़ गंवायेगा॥
शर्मिन्दा होके यूं ही, तू ख़ाली फिर आयेगा।
बिन हुक्म उसके यार, तू एक जौ न पायेगा॥
गैर अज़ खु़दा के किस में है कु़दरत जो हाथ उठाये।
मक़दूर क्या किसी का, वही दे वही दिलाये॥6॥
ज़र<ref>माल, दौलत</ref>, सीमो<ref>चाँदी</ref> लाल दुर<ref>मोती</ref> को तू बारे<ref>आखिरकार</ref> उसी से मांग।
सन्दूक मालोधन के पिटारे उसी से मांग॥
पैसा भी मांगता है तो जारे उसी से मांग।
कौड़ी भी मांगता है, तो प्यारे उसी से मांग॥
गैर अज़ खु़दा के किस में है कु़दरत जो हाथ उठाये।
मक़दूर क्या किसी का, वही दे वही दिलाये॥7॥
नैमत, मिठाई, शीरा, शकर, नान उसी से मांग।
कौड़ी की हल्दी मिर्च भी, हर आँ उसी से मांग॥
कमख़्वाब ताश गाढ़ा, गज़ी हां, उसी से मांग।
जो तुझको चाहिए, सो मेरी जां! उसी से मांग॥
गैर अज़ खु़दा के किस में है कु़दरत जो हाथ उठाये।
मक़दूर क्या किसी का, वही दे वही दिलाये॥8॥
गर वह दिलाया चाहे, तो दुश्मन से ला दिलाये।
और जो न दे तो दोस्त भी फिर अपना मुंह छिपाये॥
बिन हुक्म उसके रोटी का टुकड़ा न हाथ आये।
गर चुल्लू पानी मांगो, हरग़िज न कोई पिलाये॥
गैर अज़ खु़दा के किस में है कु़दरत जो हाथ उठाये।
मक़दूर क्या किसी का, वही दे वही दिलाये॥9॥
ज़रदार<ref>मालदार</ref> जिसको समझा है तू सेठ साहूकार।
यह सब उसी से मांगे हैं दिन रात बार-बार॥
हरगिज किसी के सामने, मत हाथ को पसार।
पूरी तेरी उसी के दिये से पड़ेगी यार॥
गैर अज़ खु़दा के किस में है कु़दरत जो हाथ उठाये।
मक़दूर क्या किसी का, वही दे वही दिलाये॥10॥
ज़रदार मालदार के, मत फिर तू आस पास।
मोहताजगी से आप, वह बैठा है जी उदास।
मां, बाप, यार, दोस्त, जिगर सबसे हो निरास।
हर दम उसी करीम की, सब अपने दिल में आस।
गैर अज़ खु़दा के किस में है कु़दरत जो हाथ उठाये।
मक़दूर क्या किसी का, वही दे वही दिलाये॥11॥
उम्दा हैं जितने खल्क़ में, क्या शाह, क्या वज़ीर।
अल्लाह ही ग़नी<ref>मालदार</ref> है, और हैं यह सब फ़क़ीर॥
क्या गंजो<ref>निधि, ख़जाना, कोष</ref> मुल्को मालो मकां, ताज क्या सरीर।
जो मांगना है मांगो उसी से मियां ‘नज़ीर’॥
गैर अज़ खु़दा के किस में है कु़दरत जो हाथ उठाये।
मक़दूर क्या किसी का, वही दे वही दिलाये॥12॥