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"पेट की फ़िलासफ़ी / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

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14:08, 8 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

करता है कोई ज़ोरो जफ़ा पेट के लिए।
सहता है कोई रंजो बला पेट के लिए॥
सीख़ा है कोई मक्रो दग़ा पेट के लिए।
फिरता है कोई वे सरो पा पेट के लिए॥
जो है सो हो रहा है फ़िदा पेट के लिए॥1॥

आज़िज़ हैं इसके वास्ते क्या शाह क्या वज़ीर।
मोहताज़ हैं इसी के लिए बख़्शियो अमीर॥
मुंशी, वकील, एलची<ref>पत्रवाहक, राजदूत</ref>, मुतसद्दियों<ref>प्रबन्धक, पेशकार, लिपिक</ref>, मुशीर<ref>सलाहकार</ref>।
चाकर, नफ़र<ref>नौकर</ref>, गुलाम, तवंगर, ग़नी<ref>धनी</ref>, फ़क़ीर॥
सब कर रहे हैं फ़िक्र सदा पेट के लिए॥2॥

सर्राफ़, खु़र्दिये से लगा सेठ साहूकार।
दल्लाल, जौहरी और किनारी के पेशे वार॥
पंसारियो, बज़ाज़, अनाजों के कारोबार।
व्यापार लेन देन बनज कर्ज़ और उधार॥
है सबने ठकठका यह किया पेट के लिए॥3॥

अब ख़ल्क़ में हैं छोटे बड़े जितने पेशेवर।
सीखे उसी के वास्ते सब क़स्ब और हुनर॥
सहहाफ, जिल्दसाज़पिलमची<ref>मुलम्मे का काम करने वाला</ref>, कमान गर।
जींदोज, गुल फ़रोश, बिसाती, सफ़ाल गर॥
बैठे हैं सब दुकान लगा पेट के लिए॥4॥

बैठे हैं मस्जिदों में मुसल्ले बिछा बिछा।
जुव्वे पहन के, हाथ में तस्वीह को फिरा॥
वाइज के हर सुखन में है खाने का मुद्दआ।
आबिद भी दावतों की इबादत है कर रहा॥
ज़ाहिद भी मांगता है दुआ पेट के लिये॥5॥

क्या मीनेसाज़ काम के और क्या मुरस्सा कार।
हुक्काक क्या मुसव्विरो नक़्क़ाश ज़र निगार॥
देखा तो न सुनार कोई और न अब लुहार।
सब अपने अपने पेट के करते हैं कारोबार॥
पेशा हर एक ने सीख लिया पेट के लिए॥6॥

गन्धी के मग्ज़ में भी यही रच रही है बो।
खींचे हैं जब गुलाब निकाले हैं इत्र बो॥
शीशी किसी को, सींक के फोए किसी को दो।
हर दम छिड़क गुलाब लगा तन से इत्र को॥
लपटें हर एक ही को सुँघा पेट के लिए॥7॥

रंगरेज़ बैठे रंगते हैं, रंगत हज़ारियाँ।
सुर्खो, गुलाब, ज़र्द, स्याह, सब्ज धारियाँ॥
मख़मल है कोई कोई है मशरू कटारियाँ।
जंगल में जाके देखा तो इस जा भी न्यारियाँ॥
नित ख़ाक छानता है पड़ा पेट के लिए॥8॥

बदनाम है इसी के लिए खल्क़ में कलाल।
ज़व्वाह भी करे हैं इसी के लिए हलाल॥
सय्याद भी इसी के लिए ले चला है जाल।
ठग भी इसी के वास्ते फांसी गले मंे डाल॥
हर वक्त घोंटता है गला पेट के लिए॥9॥

नटखट, उचक्के, चोर, दग़ाबाज, राह मार।
अय्यार जेबकतरे, नज़रबाज़, होशियार॥
सब अपने-अपने पेट के करते हैं कारोबार।
कोई खु़दा के वास्ते करता नहीं शिकार॥
बिल्ली भी मारती है चूहा पेट के लिए॥10॥

बांका सिपाही खू़ब शुज़ाअत में बे ज़िगर।
वह भी इसी के वास्ते ले तेग़ और तबर॥
लड़ता है तोप, तीर, तुफंगों में आन कर।
खाता है जख़्म खून में होता है तरबतर॥
आखि़र को सर भी दे है कटा पेट के लिए॥11॥

फ़ाज़िल के फ़ज़्ल में भी इसी की है इल्तिजा।
आबिद नुजूमी का भी इसी पर है मुद्दआ॥
मुल्ला भी दिन गुज़ारे हैं लड़के पढ़ा-पढ़ा।
शायर भी देखिये तो क़सीदे बना बना॥
क्या-क्या करे है वस्फो सना पेट के लिए॥12॥

क़ाजी के हाल की भी यही बात है गवाह।
मुफ्ली के क़स्द की भी यह शाहिद है ख़्वाह मख्वाह॥
बैद और हकीम की भी इसी पर है अब निगाह।
अत्तार के भी दर्द को देखा तो वह भी आह॥
दिन रात कूटता है दवा पेट के लिए॥13॥

पढ़ते हैं अब कु़रान जो मुर्दों का लेके नाम।
फूलों में बैठ करते हैं पंज आयतें तमाम॥
दोजख़ में या बहिश्त में मुर्दे का हो मुकाम।
कुछ हो पर उनको हलवे व मांडे से अपने काम॥
खु़श हो गये जब उनको मिला पेट के लिए॥14॥

उल्फ़त किसी के दिल में, किसी में पड़ा है बैर।
माने कोई हरम को, कोई पूजता है दैर॥
खाने की सारी दोस्ती, खाने की सारी सैर।
कहता है अब फ़क़ीर भी देकर दुआये ख़ैर॥
बाबा कुछ आज मुझको दिला पेट के लिए॥15॥

आशिक़ के तई जो देखें हैं सौ नेमतों की जेट।
लड़के भी अपनी खोल के छाती दिखाके पेट॥
गोदी में बैठ जाते हैं हर दम बग़ल में लेट।
खाने की देख चाह लगावट की कर लपेट॥
क्या-क्या करें है नाज़ो अदा पेट के लिए॥16॥

हैं जिनके पास मनसबो जागीरो मालो जाह।
खूंबां भी उनके साथ करें हैं सदा निबाह॥
खाने की सारी दोस्ती खाने की सारी चाह।
देखा जो खू़ब गौर से हमने तो वाह-वाह॥
माशूक भी करें हैं वफ़ा पेट के लिए॥17॥

रंडी जो नाचती है परी ज़ाद फुलझड़ी।
सर पांव से तमाम जवाहर में है जड़ी॥
चितवन लगावटों की जताकर घड़ी-घड़ी।
ले शाम से सहर तई है नाचती खड़ी॥
सौ सौ तरह के भाव बता पेट के लिए॥18॥

लाखों में कोई ले है मुहब्बत से हक़ का नाम।
वर्ना सब अपने पेट के हैं कल्मे और कलाम॥
न आक़िबत की फ़िक्र न राहे खु़दा से काम।
समझे न कुछ हलाल न जाना कि कुछ हराम॥
जो जिससे हो सका सो किया पेट के लिए॥19॥

जितने हैं अब जहान में कम जात या असील।
सब अपने-अपने पेट की करते हैं क़ालो क़ील॥
शेरो पिलंग,<ref>तेंदुआ</ref> कर्गो<ref>कर्गदन का लघु, गैंड़ा</ref> हिरन, च्यूंटी ओरफ़ील।
कौवा, बटेर, हंस लघड़बाज, गिद्धो चील॥
सब ढूंढ़ते फिरे हैं ग़िजा पेट के लिए॥20॥

जिसका शिक़म भरा है वह हंसता है मिस्ल फूल।
ख़ाली है जिसका पेट वह रोता है हो मलूल॥
जब तक न इस गढ़े में पड़े आके ख़ाक धूल।
सूझे धरम न दीन न अल्लाह न रसूल॥
जो-जो कोई करे सो बजा पेट के लिए॥21॥

ज़रदार, मालदार, गदा, शाह क्या वज़ीर।
सरदार क्या ग़रीब तवंगर हो या फ़क़ीर॥
हर दम सबों को देखा इसी हाल में असीर।
अपनी यही दुआ है शबी रोज़ ऐ ‘नज़ीर’॥
दे शर्मो आबरू से खु़दा पेट के लिए॥22॥

शब्दार्थ
<references/>