"रूपए की फ़िलासफ़ी / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर
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नक्शा है अयां<ref>ज़ाहिर</ref> सौ तरबो<ref>खुशी</ref> रक़्स<ref>नृत्य</ref> की रै का।
है रब्ते बहम<ref>मेल</ref> तबलओ सारंगियो नै<ref>बाँसुरी</ref> का॥
झंकार मज़ीरों की है और शोर है ले का।
मीना की झलक जाम उधर झलके हैं मै<ref>शराब</ref> का॥
झमका नज़र आता है हर एक ऐश की शै का।
दुनियां में अजब रूप झलकता है रुपे का॥1॥
हर आन जहां रूप रुपे के हैं झलकते।
क्या-क्या ज़रो जे़बर के हैं वां रंग दमकते॥
मोती भी झलकते हैं जवाहर भी चमकते।
सब ठाठ इसी चिलकी से देखें हैं चिलकते॥
झमका नज़र आता है हर एक ऐश की शै का।
दुनियां में अजब रूप झलकता है रुपे का॥2॥
बन ठन के हर एक बज़्म<ref>महफिल</ref> में आते हैं इसी से।
मेलों में तमाशों में भी जाते हैं इसी से॥
शीरीनियां मेवे भी मंगाते हैं इसी से।
खाते हैं और औरों को खिलाते हैं इसी से॥
झमका नज़र आता है हर एक ऐश की शै का।
दुनियां में अजब रूप झलकता है रुपे का॥3॥
पोशाक झमकदार बनाते हैं इसी से।
हश्मत के चमनकार बनाते हैं इसी से॥
महलात नमूदार बनाते हैं इसी से।
बाग़ात चमन ज़ार बनाते हैं इसी से॥
झमका नज़र आता है हर एक ऐश की शै का।
दुनियां में अजब रूप झलकता है रुपे का॥4॥
इस रूप से है हुस्न फसूंकार मुहैया।
इस रूप से फ़रहत के हैं आसार मुहैया॥
गजरे से लगा तुर्रए ज़र तार मुहैया।
क्या मोतिया है मोतियों के हार मुहैया॥
झमका नज़र आता है हर एक ऐश की शै का।
दुनियां में अजब रूप झलकता है रुपे का॥5॥
इस रूप से गमीं के भी सामान अयां हैं।
ख़स ख़ाने हैं छिड़के हुए और इत्र फिशां हैं॥
दिन जो भी जिधर देखिए ठण्डक के निशां हैं।
और शव के भी सोने को हवा दार मकां हैं॥
झमका नज़र आता है हर एक ऐश की शै का।
दुनियां में अजब रूप झलकता है रुपे का॥6॥
इस रूप से बारिश की भी चीजे़ं हैं मयस्सर।
रथ, छतरियां, बारानियां और मोम की चादर॥
बाहर भी वह देखें हैं बहारों को नज़र भर।
घर में भी खु़शी बैठे हैं सामान बनाकर॥
झमका नज़र आता है हर एक ऐश की शै का।
दुनियां में अजब रूप झलकता है रुपे का॥7॥
उजले हैं बिछे फ़र्श नहीं कुछ भी कुचैला॥
देखो जिधर असवाब हैं खु़श वक्ती का फैला।
भरता है इसी थैली से हर जिन्स का थैला॥
झमका नज़र आता है हर एक ऐश की शै का।
दुनियां में अजब रूप झलकता है रुपे का॥8॥
ज़ाहिर में तो ऐ दोस्तो! राहत है इसी से।
हर आन दिलो जां को मुसर्रत हैं इसी से॥
हर बात की खू़बीयो फ़राग़त है इसी से।
आलम में ‘नज़ीर’ इश्रतो फ़रहत है इसी से॥
झमका नज़र आता है हर एक ऐश की शै का।
दुनियां में अजब रूप झलकता है रुपे का॥9॥