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"जवानी / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

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13:03, 19 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

बना है अपने आलम में वह कुछ आलम जवानी का।
कि उम्रे खिज्र से बेहतर है एक एक दम जवानी का॥

नहीं बूढ़ों की दाढ़ी पर मियां यह रंग बिस्मे का।
किया है उनके एक एक बाल ने मातम जवानी का॥

यह बूढ़े गो कि अपने मुंह से शेख़ी में नहीं कहते।
भरा है आह पर इन सबके दिल में ग़म जवानी का॥

यह पीराने जहां इस वास्ते रोते हैं अब हर दम।
कि क्या-क्या इनका हंगामा हुआ बरहम<ref>अस्त-व्यस्त</ref> जवानी का॥

किसी की पीठ कुबड़ी को भला ख़ातिर में क्या लावे।
अकड़ में नौ जवानों के जो मारे दम जवानी का॥

शराबो गुलबदन साक़ी मजे़ ऐशोतरब<ref>आनन्द, हर्ष उल्लास</ref> हर दम।
बहारे जिन्दगी कहिये तो है मौसम जवानी का॥

”नज़ीर“ अब हम उड़ाते हैं मजे़ क्या-क्या अहा! हा! हा
बनाया है अजब अल्लाह ने आलम जवानी का॥

शब्दार्थ
<references/>