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"होली-10 / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

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13:37, 19 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

होली की बहार आई फ़रहत<ref>खुशी, आनन्द</ref> की खिलीं कलियां।
बाजों की सदाओं<ref>स्वर, आवाज़ों</ref> से कूचे भरे और गलियां।
दिलबर<ref>प्रेमपात्र, प्रिय</ref> से कहा हमने टुक छोड़िये छलबलियां।
अब रंग गुलालों की कुछ कीजिय रंग रलियां।
होली में यही धूमें लगती हैं बहुत भलियां<ref>भली</ref>॥1॥

है सब में मची होली अब तुम भी यह चर्चा लो।
रखवाओ अबीर ऐ जां! और मैप<ref>शराब</ref> को भी मंगवाओ।
हम हाथ में लोटा लें तुम हाथ में लुटिया<ref>छोटा लोटा</ref> लो।
हम तुमको भिगो डालें तुम हमको भिगो डालो।
होली में यही धूमें लगती हैं बहुत भलियां॥2॥

है तर्ज जो होली की उस तर्ज़ हंसो-बोलो।
जो छेड़ हैं इश्रत<ref>खुशी, आनन्द</ref> की अब तुम भी वही छेड़ो।
हम डालें गुलाल ऐ जां! तुम रंग इधर छिड़को।
हम बोलें ‘अहा हा हा’ तुम बोलो ”उहो हो हो“।
होली में यही धूमें लगती हैं बहुत भलियां॥3॥

इस दम तो मियां हम तुम इस ऐश की ठहरावें।
फिर रंग से हाथों में पिचकारियां चमकावें।
कपड़ों को भिगो डालें और ढंग कई लावे।
भीगे हुए कपड़ों से आपस में लिपट जावे।
होली में यही धूमें लगती हैं बहुत भलियां॥4॥

हम छेड़ें तुम्हें हंस हंस, तुम छेड़ की ठहरा दो।
हम बोसे<ref>चुम्बन</ref> भी ले लेवें तुम प्यार से बहला दो।
हम छाती से आ लिपटें तुम सीने को दिखलादो।
हम फेकें गुलाल ऐ जां! तुम रंग को छलकादो।
होली में यही धूमें लगती हैं बहुत भलियां॥5॥

यह वक़्त खु़शी का है मत काम रखो रम<ref>भागना</ref> से।
ले रंग गुलाल ऐ जां! और नाज़ की ख़म चम से।
हंस हंस के बहम<ref>आपस में</ref> लिपटें इस ऐश के आलम से।
हम ‘छोड़’ कहें तुमसे, तुम ‘छोड़’ कहो हमसे।
होली में यही धूमें लगती हैं बहुत भलियां॥6॥

कपड़ों पे जो आपस में अब रंग पड़े ढलकें।
और पड़के गुलाल ऐ जां! रंगीं हों भवें पलकें।
कुछ हाथ इधर तर हों कुछ भीगें उधर अलकें।
हर आन हंसे कूदें, इश्रत के मजे़ झलकें।
होली में यही धूमें लगती हैं बहुत भलियां॥7॥

तुम रंग इधर लाओ और हम भी उधर आवें।
कर ऐश की तैयारी धुन होली की बर लावें।
और रंग से छीटों की आपस में जो ठहरावें।
जब खेल चुकें होली फिर सीनों से लग जावें।
होली में यही धूमें लगती हैं बहुत भलियां॥8॥

इस वक़्त मुहैया<ref>एकत्र, उपस्थित</ref> है सब ऐशो-तरब<ref>विलास</ref> की शै<ref>चीज़</ref>।
दफ़ बजते हैं हर जानिब और बीनो-रुबावो नै<ref>बीन, रुबाव और बांसुरी</ref>।
हो तुम में भी और हममें होली की है जो कुछ रे<ref>राय</ref>।
सुनकर यह ‘नज़ीर’ उसने हंस कर यह कहा ‘सच है।’
होली में यही धूमें लगती हैं बहुत भलियां॥9॥

शब्दार्थ
<references/>