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"होली-15 / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर
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हां इधर को भी ऐ गुंचादहन<ref>कली जैसे सुन्दर और छोटे मुंह वाला</ref> पिचकारी।
देखें कैसी है तेरी रंगबिरंग<ref>रंग फेंकने वाली रंग बिरंगी</ref> पिचकारी॥1॥
तेरी पिचकारी की तक़दीद में ऐ गुल हर सुबह।
साथ ले निकले हैं सूरज की किरन पिचकारी॥2॥
जिस पे हो रंग फिशां उसको बना देती है।
सर से ले पांव तलक रश्के चमन पिचकारी॥3॥
बात कुछ बस की नहीं वर्ना तेरे हाथों में।
अभी आ बैठें यहीं बनकर हमतंग<ref>समान, पिचकारी के समान</ref> पिचकारी॥4॥
हो न हो दिल ही किसी आशिके शैदा का ”नज़ीर“।
पहुंचा है हाथ में उसके बनकर पिचकारी॥5॥
शब्दार्थ
<references/>