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"लल्लू जगधर का मेला / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

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है धूम आज यारो क्या! आगरे के अन्दर।
ख़ल्क़त<ref>जनता</ref> के ठठ बंधे हैं हर एक तरफ़ से आकर॥
गुल, शोर, सैर, चर्चा अम्बोह के सरासर।
क्या सैर मच रही है, सुनता है मेरे दिलवर॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥1॥

रोज़ा में ताजगंज के अम्बोह हो रहा है।
महबूब गुलरुखों का इक बाग सा लगा है॥
माजून और मिठाई, कोला है, संगतरा है।
इक दम का यह नज़ारा ऐ यारो! वाह-वाह है॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥2॥

ओढ़े है साल कोई महबूब शोख लाला।
चीरा ज़री का सर पर या सुर्ख़ है दुशाला॥
माशूक़ गुलबदन है आशिक है दीद वाला<ref>दर्शन दीदार, वाला हिन्दी प्रत्यय दर्शन करने वाला</ref>।
लग्गड़ पिला के हरदम कहता है हुक्का वाला॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥3॥

हर जा कदम कदम पर गुलज़ार बन रहे हैं।
नातें<ref>हज़रत मुहम्मद साहब की छन्दोबद्ध स्तुति, स्तुतिगान</ref>, कहानी, किस्से हर जा बखन रहे हैं॥
सुल्फ़ों के दम हैं उड़ते सब्जी भी छन रहे हैं।
हर भंग के कदह<ref>चषक, पानपात्र, प्याला</ref> पर यह शोर ठन रहे हैं॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥4॥

गज़रों का हर तरफ़ को बाज़ार लग रहा है।
गन्ने, सिंघाड़े, मूली, तरबूज भी धरा है॥
अदना चबैने वाला परमल जो बेचता है।
वह भी चला जो घर से कहता यही चला है॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥5॥

जो खू़बरू तवायफ़ है हुस्न की घमंडी।
सीना लगे से जिसके हो जाय छाती ठंडी॥
देख आश्ना<ref>मित्र</ref> का चहरा और घेरदार बंडी।
हर दम यह उससे हंस हंस कहती है शोख़ रंडी॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥6॥

रंडी जो अचपली है टुक दीद की लड़ारी।
कुछ लोग उसके आगे कुछ आश्ना पिछाड़ी॥
रथवान से कहे हैं सुन ओ! मियां पहाड़ी।
क्या ऊंगता है जल्दी लो हांक अपनी गाड़ी॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥7॥

है हुस्न की जो अपने सरशार बाई नूरन।
जिसका मिलाप यारो सौ बाइयों का चूरन॥
हैं यार उनके मिर्ज़ा और या कि शेख घूरन।
मिन्नत से कह रहे हैं सुनती हैं वो ज़हूरन॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥8॥

दो रंडियां तवायफ़ जोबन है जिनका बाला।
बरसे हैं जिनके मुंह पर सर पांव से छिनाला॥
कोई कहे है ”ऐ है“ काफ़िर ने मार डाला।
कोई पुकारता है ओ! नौ बहार लाला॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥9॥

जो गुलबदन चले हैं सीना उठा उठाके।
क़फ़दों की खटखटाहट पाज़ेब के झनाके॥
आती हैं धज बनाके जब आश्ना के आगे।
कहता है वह अहा! हा! ओ चित लगन अदा के॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥10॥

जो नौ बहार रंडी टुक हुश्न की है काली।
बाला हिलाके हरदम दे हैं हर एक को गाली॥
देख उस परी का बाला औ कुरतियों की जाली।
हर एक पुकारता है ओ आ जा! बाले वाली!
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥11॥

कोई आश्ना से अपने लड़ती है खु़द पसंदी।
हरगिज़ न जावे यां से बिन रुपए के बंदी॥
वह दे है आठ आने लेती नहीं यह गंदी।
कहता है जब तो जलकर क्या चल रही है ख़दी॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥12॥

रस्ते में गर किसी जा दो लड़ रहे हैं झड़वे।
करते हैं गाली दे-दे आपस में भड़वे-भड़वे॥
कोई उसको रोकता है चल छोड़ मुझको भड़वे।
कोई उसको कह रहा है क्या लड़ रहा है भड़वे॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥13॥

जो हीजड़े ज़नाने आए हैं करके हल्ले।
हाथों में महदियां हैं और पोर-पोर छल्ले॥
जो उनके आश्ना हैं देख उनको होके झल्ले।
हँस-हँस पुकारते हैं ओ! जानी प्यारे छल्ले?
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥14॥

कोई उनसे कह रहा है ऐ! नौ बहार काहू!
तेरी तो झावनी ने दिल कर दिया है मजनूं॥
वह सुन के बात उसकी मटका के आंखें कर हू।
ताली बजाके हर आँ कहता है ”क्या है मामूं“॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥15॥

जो आश्ना हैं अपने लोंडे के इश्क़ मारे।
फिरते हैं शाद दिल में लोंडे को घेर घारे॥
लाते हैं लड्डू पेड़े कर हुस्न के नज़ारे।
हर शोख गुलबदन से कहते हैं यों ”कि प्यारे“॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥16॥

हर आन सुर्माबाला सुर्मा सवारता है।
औ प्यारी आंखड़ियों से आशिक़ को मारता है॥
सक़्क़ा जो छुल लगाकर पानी को ढालता है।
वह भी कटोरे डनका हरदम पुकारता है॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥17॥

इस्हाक़ शाह जो आशिक़ इक रिंद आ रहे हैं।
हर शोख गुलबदन से आँखें मिला रहे हैं॥
लोग उनके रेख़्तों पर गर्दन हिला रहे हैं।
वह भी हर इक सुखुन पर यह ही सुना रहे हैं॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥18॥

क़ब्बाल या अताई जो गीत जोड़ता है।
मुंहचंग, ढमढमी से लच्छे ही छोड़ता है॥
जब गतगिरी में लाकर आवाज़ मोड़ता है।
वह भी उसी के ऊपर ला तान तोड़ता है॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥19॥

मुफ़्लिस ग़रीब अदना कुछ होवे या न होवे।
आया है देखने को तो ग़म को दिल से धोवे॥
कहता चला है दिल से कोई रात भूका सोवे।
धेले की कौड़ियों में चल होनी हो सो होवे॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥20॥

ढलाई रोशनी से मामूर हो रही है।
घर जगमगा अटारी पुर नूर हो रही है॥
हर ईंट ईंट उसकी सिन्दूर हो रही है।
यह बात तो जहां में मशहूर हो रही है॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥21॥

नौ कारख़ाने वाले नौबत को सज रहे हैं।
रंडी कहरवा नाचे धोंसे गरज रहे हैं॥
इस बात पै तो यारो नक्कारे बज रहे हैं।
आये हैं जो भी यां पर सब होश तज रहे हैं॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥22॥

यह भीड़ है कि रस्ता घोड़े को, न बहल को।
हो दल के दल जहां पर क्या दोष है कुचल को॥
निकले हैं मारधक्के जब चीर फाड़ दल को।
सब उस घड़ी हैं कहते ललकार इस मसल को॥
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥23॥

होता है बरसवें दिन यह आगरे में मेला।
मुद्दत से लल्लू जगधर है नाम उसका ठहरा॥
सौ भीड़ और भड़के अम्बोह और तमाशा।
हरदम ”नज़ीर“ भी अब कहता है यों अहा! हा!
टुक देख रोशनी को अब ताजगंज अन्दर।
धी का टना मरावे लल्लू का बाप जगधर॥24॥

शब्दार्थ
<references/>