भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बालपन-बाँसुरी बजैया का / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ("बालपन-बाँसुरी बजैया का / नज़ीर अकबराबादी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी
 
|रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी
 +
|संग्रह=नज़ीर ग्रन्थावली-2 / नज़ीर अकबराबादी
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
<poem>
 
<poem>
यारो सुनो ! ये दधि के लुटैया का बालपन ।
+
यारो सुनो! यह दधि के लुटैया का बालपन।
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।
+
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन॥
मोहन-सरूप निरत करैया का बालपन ।
+
मोहन सरूप निरत करैया का बालपन।
बन-बन के ग्‍वाल गौएँ चरैया का बालपन ।।
+
बन-बन के ग्वाल गोएँ चरैया का बालपन॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।1।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥1॥
  
ज़ाहिर में सुत वो नंद जसोदा के आप थे ।
+
ज़ाहिर में सुत वह नन्द जसोदा के आप थे।
वरना वह आप माई थे और आप बाप थे ।।
+
वर्ना वह आप माई थे और आप बाप थे॥
परदे में बालपन के यह उनके मिलाप थे ।
+
पर्दे में बालपन के यह उनके मिलाप थे।
जोती सरूप कहिए जिन्‍हें सो वह आप थे ।।
+
जोती सरूप कहिये जिन्हें सो वह आप थे॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।2।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥2॥
  
उनको तो बालपन से न था काम कुछ ज़रा ।
+
उनको तो बालपन से न था काम कुछ ज़रा।
संसार की जो रीति थी उसको रखा बचा ।।
+
संसार की जो रीति थी उसको रखा बजा॥
मालिक थे वो तो आपी उन्‍हें बालपन से क्‍या ।
+
मालिक थे वह तो आपी उन्हें बालपन से क्या।
वाँ बालपन, जवानी, बुढ़ापा, सब एक सा ।।
+
वां बालपन, जवानी, बुढ़ापा, सब एक था॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।3।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥3॥
  
मालिक जो होवे उसको सभी ठाठ याँ सरे ।
+
मालिक जो होवे उसको सभी ठाठ यां सरे।
चाहे वह नंगे पाँव फिरे या मुकुट धरे ।।
+
चाहे वह नंगे पांव फिरे या मुकुट धरे॥
सब रूप हैं उसी के वह जो चाहे सो करे ।
+
सब रूप हैं उसी के वह जो चाहे सो करे।
चाहे जवाँ हो, चाहे लड़कपन से मन हरे ।।
+
चाहे जवां हो, चाहे लड़कपन से मन हरे॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।4।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥4॥
  
बाले हो ब्रज राज जो दुनियाँ में आ गए ।
+
बाले हो व्रज राज जो दुनियां में आ गए।
लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गए ।।
+
लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गए॥
इस बालपन के रूप में कितनों को भा गए ।
+
इस बालपन के रूप में कितनों को भा गए।
इक यह भी लहर थी कि जहाँ को जता गए ।।
+
इक यह भी लहर थी कि जहां को जता गए॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।5।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥5॥
  
यूँ बालपन तो होता है हर तिफ़्ल का भला ।
+
यूं बालपन तो होता है हर तिफ़्ल<ref>बच्चा</ref> का भला।
पर उनके बालपन में तो कुछ और भेद था ।।
+
पर उनके बालपन में तो कुछ और भेद था॥
इस भेद की भला जी, किसी को ख़बर है क्या ।
+
इस भेद की भला जी, किसी को ख़बर है क्या।
क्या जाने अपने खेलने आए थे क्या कला ।।
+
क्या जाने अपने खेलने आये थे क्या कला॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।6।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥6॥
  
राधारमन तो यारो अजब जायेगौर थे ।
+
राधारमन तो यारो अ़जब जायेगौर<ref>विचार करने योग्य</ref> थे।
लड़कों में वह कहाँ है, जो कुछ उनमें तौर थे ।।
+
लड़कों में वह कहां है, जो कुछ उनमें तौर थे॥
आप ही वह प्रभू नाथ थे आप ही वह दौर थे ।
+
आप ही वह प्रभू नाथ थे आप ही वह दौर थे।
उनके तो बालपन ही में तेवर कुछ और थे ।।
+
उनके तो बालपन ही में तेवर कुछ और थे॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।7।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥7॥
  
वह बालपन में देखते जिधर नज़र उठा ।
+
वह बालपन में देखते जीधर नज़र उठा।
पत्थर भी एक बार तो बन जाता मोम सा ।।
+
पत्थर भी एक बार तो बन जाता मोम सा॥
उस रूप को ज्ञानी कोई देखता जो आ ।
+
उस रूप को ज्ञानी कोई देखता जो आ।
दंडवत ही वह करता था माथा झुका झुका ।।
+
दंडवत ही वह करता था माथा झुका झुका॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।8।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥8॥
+
परदा न बालपन का वह करते अगर ज़रा ।
+
क्‍या ताब थी जो कोई नज़र भर के देखता ।।
+
झाड़ और पहाड़ देते सभी अपना सर झुका ।
+
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था ।।
+
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।9।।
+
  
मोहन, मदन, गोपाल, हरी, बंस, मन हरन ।
+
पर्दा न बालपन का वह करते अगर ज़रा।
बलिहारी उनके नाम पै मेरा यह तन बदन ।।
+
क्या ताब थी जो कोई नज़र भर के देखता॥
गिरधारी, नंदलाल, हरि नाथ, गोवरधन ।
+
झाड़ और पहाड़ देते सभी अपना सर झुका।
लाखों किए बनाव, हज़ारों किए जतन ।।
+
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।10।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥9॥
  
पैदा तो मधु पुरी में हुए श्याम जी मुरार ।
+
मोहन, मदन, गोपाल, हरी बंस, मन हरन।
गोकुल में आके नन्द के घर में लिया क़रार ।।
+
बलिहारी उनके नाम पै मेरा यह तन बदन॥
नन्द उनको देख होवे था जी जान से निसार ।
+
गिरधारी, नन्दलाल, हरि नाथ, गोवरधन।
माई जसोदा पीती थी पानी को वार वार ।।
+
लाखों किये बनाव, हज़ारों किये जतन॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।11।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥10॥
  
जब तक कि दूध पीते रहे ग्वाल ब्रज राज ।
+
पैदा तो मधु पुरी में हुए श्याम जी मुरार।
सबके गले के कठुले थे और सबके सर के ताज ।।
+
गोकुल में आके नन्छ के घर में लिया क़रार<ref>ठहराव</ref>॥
सुन्दर जो नारियाँ थीं वे करती थीं कामो-काज
+
नन्द उनको देख होवे था जी जान से निसार<ref>न्यौछावर</ref>
रसिया का उन दिनों तो अजब रस का था मिज़ाज ।।
+
माई जसोदा पीती थी पानी को वार वार॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।12।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥11॥
  
बदशक्ल से तो रोके सदा दूर हटते थे
+
जब तक कि दूध पीते रहे ग्वाल व्रज राज।
और ख़ूबरू को देखके हँस-हँस चिमटते थे ।।
+
सबके गले के कठुले थे और सबके सर के ताज॥
जिन नारियों से उनके ग़मो-दर्द बँटते थे ।
+
सुन्दर जो नारियां थीं वह करतीं थी कामो-काज।
उनके तो दौड़-दौड़ गले से लिपटते थे ।।
+
रसिया का उन दिनों तो अजब रस का था मिज़ाज॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।13।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥12॥
  
अब घुटनियों का  उनके मैं चलना बयाँ करूँ ।
+
बदशक्ल से तो रोके सदा दूर हटते थे।
या मीठी बातें मुँह से निकलना बयाँ करूँ ।।
+
और खु़बरू को देखके हंस-हंस चिमटते थे॥
या बालकों में इस तरह से पलना बयाँ करूँ ।
+
जिन नारियों से उनके ग़मो-दर्द बंटते थे।
या गोदियों में उनका मचलना बयाँ करूँ ।।
+
उनके तो दौड़-दौड़ गले से लिपटते थे॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।14।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥13॥
+
पाटी पकड़ के चलने लगे जब मदन गोपाल ।
+
धरती तमाम हो गई एक आन में निहाल ।।
+
बासुक चरन छूने को चले छोड़ कर पताल ।
+
अकास पर भी धूम मची देख उनकी चाल ।।
+
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।15।।
+
  
थी उनकी चाल की जो अ़जब, यारो चाल-ढाल ।
+
अब घुटनियों का उनके मैं चलना बयां करूं।
पाँवों में घुंघरू बाजते, सर पर झंडूले बाल ।।
+
या मीठी बातें मुंह से निकलना बयां करूं॥
चलते ठुमक-ठुमक के जो वह डगमगाती चाल ।
+
या बालकों की तरह से पलना बयां करूं।
थांबे कभी जसोदा कभी नन्द लें संभाल ।।
+
या गोदियों में उनका मचलना बयां करूं॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।16।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥14॥
  
पहने झगा गले में जो वह दखिनी चीर का ।
+
पाटी पकड़के चलने लगे जब मदन गोपाल।
गहने में भर रहा गोया लड़का अमीर का ।।
+
धरती तमाम हो गई एक आन में निहाल<ref>समृद्ध</ref>॥
जाता था होश देख के शाही वज़ीर का ।
+
बासुक चरन छूने को चले छोड़ कर पताल।
मैं किस तरह कहूँ इसे चॊरा अहीर का ।।
+
आकास पर भी धूम मची देख उनकी चाल॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।17।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥15॥
  
जब पाँवों चलने लागे बिहारी न किशोर ।
+
थी उनकी चाल की तो अ़जब यारो चाल-ढाल।
माखन उचक्के ठहरे, मलाई दही के चोर ।।
+
पांवों में घुंघरू बाजते, सर पर झंडूले बाल॥
मुँह हाथ दूध से भरे कपड़े भी शोर-बोर ।
+
चलते ठुमक-ठुमक के जो वह डगमगाती चाल।
डाला तमाम ब्रज की गलियों में अपना शोर ।।
+
थांबें कभी जसोदा कभी नन्द लें संभाल॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।18।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥16॥
  
करने लगे यह धूम, जो गिरधारी नन्द लाल ।
+
पहने झगा गले में जो वह दखिनी चीर का।
इक आप और दूसरे साथ उनके ग्वाल बाल ।।
+
गहने में भर रहा गोया लड़का अमीर का॥
माखन दही चुराने लगे सबके देख भाल ।
+
जाता था होश देख के शाहो वज़ीर का।
की अपनी दधि की चोरी घर घर में धूम डाल ।।
+
मैं किस तरह कहूं इसे छोरा अहीर का॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।19।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥17॥
  
थे घर जो ग्वालिनों के लगे घर से जा-बजा ।
+
जब पांवों चलने लागे बिहारी न किशोर।
जिस घर को ख़ाली देखा उसी घर में जा फिरा ।।
+
माखन उचक्के ठहरे, मलाई दही के चोर॥
माखन मलाई, दूध, जो पाया सो खा लिया ।
+
मुंह हाथ दूध से भरे कपड़े भी शोर-बोर।
कुछ खाया, कुछ ख़राब किया, कुछ गिरा दिया ।।
+
डाला तमाम ब्रज की गलियों में अपना शोर॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।20।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥18॥
  
कोठी में होवे फिर तो उसी को ढंढोरना ।
+
करने लगे यह धूम, जो गिरधारी नन्द लाल।
गोली में हो तो उसमें भी जा मुँह को बोरना ।।
+
इक आप और दूसरे साथ उनके ग्वाल बाल॥
ऊँचा हो तो भी कांधे पै चढ़ कर न छोड़ना ।
+
माखन दही चुराने लगे सबके देख भाल।
पहुँचा न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना ।।
+
दी अपनी दधि की चोरी की घर घर में धूम डाल॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।21।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥19॥
  
गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहाँ ।
+
थे घर जो ग्वालिनों के लगे घर से जा-बजा।
और उसने आ पकड़ लिया तो उससे बोले हाँ ।।
+
जिस घर को ख़ाली देखा उसी घर में जा फिरा॥
मैं तो तेरे दही की उड़ाता था मक्खियाँ ।
+
माखन मलाई, दूध, जो पाया सो खा लिया।
खाता नहीं मैं उसकी निकाले था चूँटियाँ ।।
+
कुछ खाया, कुछ ख़राब किया, कुछ गिरा दिया॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।22।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥20॥
  
गर मारने को हाथ उठाती कोई ज़रा ।
+
कोठी में होवे फिर तो उसी को ढंढोरना।
तो उसकी अंगिया फाड़ते घूसे लगा-लगा ।।
+
गोली में हो तो उसमें भी जा मुंह को बोरना॥
चिल्लाते गाली देते, मचल जाते जा बजा ।
+
ऊंचा हो तो भी कांधे पै चढ़ कर न छोड़ना।
हर तरह वाँ से भाग निकलते उड़ा छुड़ा ।।
+
पहुंा न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।23।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥21॥
  
ग़ुस्से में कोई हाथ पकड़ती जो आन कर ।
+
गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहां।
तो उसको वह सरूप दिखाते थे मुरलीधर ।।
+
और उसने आ पकड़ लिया तो उससे बोले हां॥
जो आपी लाके धरती वह माखन कटोरी भर ।
+
मैं तो तेरे दही की उड़ाता था मक्खियां।
ग़ुस्सा वह उनका आन में जाता वहीं उतर ।।
+
खाता नहीं मैं उसकी निकाले था चूंटियां॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।24।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥22॥
  
उनको तो देख ग्वालिनें जी जान पाती थीं ।
+
गर मारने को हाथ उठाती कोई ज़रा।
घर में इसी बहाने से उनको बुलाती थीं ।।
+
तो उसकी अंगिया फाड़ते घूसे लगा लगा॥
ज़ाहिर में उनके हाथ से वह ग़ुल मचाती थीं ।
+
चिल्लाते गाली देते, मचल जाते जा बजा।
पर्दे में सब वह किशन के बलिहारी जाती थीं ।।
+
हर तरह वां से भाग निकलते उड़ा छुड़ा॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।25।।   
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥23॥
  
कहतीं थीं दिल में दूध जो अब हम छिपाएँगे ।
+
गुस्से में कोई हाथ पकड़ती जो आन कर।
श्रीकिशन इसी बहाने हमें मुँह दिखाएँगे ।।
+
तो उसको वह सरूप दिखाते थे मुरलीधर॥
और जो हमारे घर में यह माखन न पाएँगे ।
+
जो आपी लाके धरती वह माखन कटोरी भर।
तो उनको क्या गरज़ है यह काहे को आएँगे ।।
+
गुस्सा वह उनका आन में जाता वहीं उतर॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।26।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥24॥
  
सब मिल जसोदा पास यह कहती थी आके बीर ।
+
उनको तो देख ग्वालिनें जी जान पाती थीं।
अब तो तुम्हारा कान्ह हुआ है बड़ा शरीर ।।
+
घर में इसी बहाने से उनको बुलाती थीं॥
देता है हमको गालियाँ फिर फाड़ता है चीर ।
+
ज़ाहिर में उनके हाथ से वह गुल मचाती थीं।
छोड़े दही न दूध, न माखन, मही न खीर ।।
+
पर्दे में सब वह किशन के बलिहारी जाती थीं॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।27।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥25॥
  
माता जसोदा उनकी बहुत करती मिनतियाँ ।
+
कहतीं थीं दिल में दूध जो अब हम छिपाऐंगे।
और कान्ह को डराती उठा बन की साँटियाँ ।।
+
श्रीकृष्ण इसी बहाने हमें मुंह दिखाऐंगे॥
जब कान्हा जी जसोदा से करते यही बयाँ ।
+
और जो हमारे घर में यह माखन पाऐंगे।
तुम सच जानो माता, यह सारी हैं झूटियाँ ।।
+
तो उनको क्या ग़रज है यह काहे को आऐंगे॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।28।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥26॥
  
माता कभी यह मेरी छुंगलियाँ छुपाती हैं ।
+
सब मिल जसोदा पास यह कहती थी आके बीर।
जाता हूँ राह में तो मुझे छेड़ जाती हैं ।।
+
अब तो तुम्हारा कान्ह हुआ है बड़ा शरीर॥
आप ही मुझे रुठातीं हैं आपी मनाती हैं ।
+
देता है हमको गालियां फिर फाड़ता है चीर।
मारो इन्हें ये मुझको बहुत सा सताती हैं ।।
+
छोड़े दही न दूध, न माखन, मही न खीर॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।29।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥27॥
  
माता कभी यह मुझको पकड़ कर ले जाती हैं ।
+
माता जसोदा उनकी बहुत करती मिनतियां।
गाने में अपने साथ मुझे भी गवाती हैं ।।
+
और कान्ह को डराती उठा बन की सांटियां॥
सब नाचती हैं आप मुझे भी नचाती हैं ।
+
जब कान्ह जी जसोदा से करते यही बयां।
आप ही तुम्हारे पास यह फ़रयादी आती हैं ।।
+
तुम सच न जानो माता, यह सारी हैं झूटियां॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।30।। 
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥28॥
  
एक रोज़ मुँह में कान्ह ने माखन झुका दिया ।
+
माता कभी यह मेरी छुंगलिया छुपाती हैं।
पूछा जसोदा ने तो वहीं मुँह बना दिया ।।
+
जाता हूं राह में तो मुझे छेड़ जाती हैं॥
मुँह खोल तीन लोक का आलम दिखा दिया ।
+
आप ही मुझे रुठाती हैं आपी मनाती हैं।
एक आन में दिखा दिया और फिर भुला दिया ।
+
मारो इन्हें यह मुझको बहुत सा सताती हैं॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।31।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥29॥
  
थे कान्ह जी तो नंद जसोदा के घर के माह ।
+
माता कभी यह मुझको पकड़ कर ले जाती हैं।
मोहन नवल किशोर की थी सबके दिल में चाह ।।
+
गाने में अपने सथ मुझे भी गवाती हैं॥
उनको जो देखता था सो कहता था वाह-वाह ।
+
सब नाचती हैं आप मुझे भी नचाती हैं।
ऐसा तो बालपन न हुआ है किसी का आह ।।
+
आप ही तुम्हारे पास यह फ़रयादी<ref>गुहार लेकर</ref> आती हैं॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।32।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥30॥
  
सब मिलकर यारो किशन मुरारी की बोलो जै ।
+
एक रोज मुंह में कान्ह ने माखन झुका दिया।
गोबिन्द छैल कुंज बिहारी की बोलो जै ।।
+
पूछा जसोदा ने तो वहीं मुंह बना दिया॥
दधिचोर गोपी नाथ, बिहारी की बोलो जै ।
+
मुंह खोल तीन लोक का आलम दिखा दिया।
तुम भी 'नज़ीर' किशन बिहारी की बोलो जै ।।
+
एक आन में दिखा दिया और फिर भुला दिया॥
::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
+
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।33।।
+
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥31॥
 +
 
 +
थे कान्ह जी तो नंद जसोदा के घर के माह।
 +
मोहन नवल किशोर की थी सबके दिल में चाह॥
 +
उनको जो देखता था सो कहता था वाह-वाह।
 +
ऐसा तो बालपन न हुआ है किसी का आह॥
 +
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
 +
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥32॥
 +
 
 +
सब मिलके यारो किशन मुरारी की बोलो जै।
 +
गोबिन्द छैल कुंज बिहारी की बोलो जै॥
 +
दधिचोर गोपी नाथ, बिहारी की बोलो जै।
 +
तुम भी ”नज़ीर“ किशन बिहारी की बोलो जै॥
 +
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
 +
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥33॥
 
</poem>
 
</poem>
 +
{{KKMeaning}}

14:38, 19 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

यारो सुनो! यह दधि के लुटैया का बालपन।
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन॥
मोहन सरूप निरत करैया का बालपन।
बन-बन के ग्वाल गोएँ चरैया का बालपन॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥1॥

ज़ाहिर में सुत वह नन्द जसोदा के आप थे।
वर्ना वह आप माई थे और आप बाप थे॥
पर्दे में बालपन के यह उनके मिलाप थे।
जोती सरूप कहिये जिन्हें सो वह आप थे॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥2॥

उनको तो बालपन से न था काम कुछ ज़रा।
संसार की जो रीति थी उसको रखा बजा॥
मालिक थे वह तो आपी उन्हें बालपन से क्या।
वां बालपन, जवानी, बुढ़ापा, सब एक था॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥3॥

मालिक जो होवे उसको सभी ठाठ यां सरे।
चाहे वह नंगे पांव फिरे या मुकुट धरे॥
सब रूप हैं उसी के वह जो चाहे सो करे।
चाहे जवां हो, चाहे लड़कपन से मन हरे॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥4॥

बाले हो व्रज राज जो दुनियां में आ गए।
लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गए॥
इस बालपन के रूप में कितनों को भा गए।
इक यह भी लहर थी कि जहां को जता गए॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥5॥

यूं बालपन तो होता है हर तिफ़्ल<ref>बच्चा</ref> का भला।
पर उनके बालपन में तो कुछ और भेद था॥
इस भेद की भला जी, किसी को ख़बर है क्या।
क्या जाने अपने खेलने आये थे क्या कला॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥6॥

राधारमन तो यारो अ़जब जायेगौर<ref>विचार करने योग्य</ref> थे।
लड़कों में वह कहां है, जो कुछ उनमें तौर थे॥
आप ही वह प्रभू नाथ थे आप ही वह दौर थे।
उनके तो बालपन ही में तेवर कुछ और थे॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥7॥

वह बालपन में देखते जीधर नज़र उठा।
पत्थर भी एक बार तो बन जाता मोम सा॥
उस रूप को ज्ञानी कोई देखता जो आ।
दंडवत ही वह करता था माथा झुका झुका॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥8॥

पर्दा न बालपन का वह करते अगर ज़रा।
क्या ताब थी जो कोई नज़र भर के देखता॥
झाड़ और पहाड़ देते सभी अपना सर झुका।
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥9॥

मोहन, मदन, गोपाल, हरी बंस, मन हरन।
बलिहारी उनके नाम पै मेरा यह तन बदन॥
गिरधारी, नन्दलाल, हरि नाथ, गोवरधन।
लाखों किये बनाव, हज़ारों किये जतन॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥10॥

पैदा तो मधु पुरी में हुए श्याम जी मुरार।
गोकुल में आके नन्छ के घर में लिया क़रार<ref>ठहराव</ref>॥
नन्द उनको देख होवे था जी जान से निसार<ref>न्यौछावर</ref>।
माई जसोदा पीती थी पानी को वार वार॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥11॥

जब तक कि दूध पीते रहे ग्वाल व्रज राज।
सबके गले के कठुले थे और सबके सर के ताज॥
सुन्दर जो नारियां थीं वह करतीं थी कामो-काज।
रसिया का उन दिनों तो अजब रस का था मिज़ाज॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥12॥

बदशक्ल से तो रोके सदा दूर हटते थे।
और खु़बरू को देखके हंस-हंस चिमटते थे॥
जिन नारियों से उनके ग़मो-दर्द बंटते थे।
उनके तो दौड़-दौड़ गले से लिपटते थे॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥13॥

अब घुटनियों का उनके मैं चलना बयां करूं।
या मीठी बातें मुंह से निकलना बयां करूं॥
या बालकों की तरह से पलना बयां करूं।
या गोदियों में उनका मचलना बयां करूं॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥14॥

पाटी पकड़के चलने लगे जब मदन गोपाल।
धरती तमाम हो गई एक आन में निहाल<ref>समृद्ध</ref>॥
बासुक चरन छूने को चले छोड़ कर पताल।
आकास पर भी धूम मची देख उनकी चाल॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥15॥

थी उनकी चाल की तो अ़जब यारो चाल-ढाल।
पांवों में घुंघरू बाजते, सर पर झंडूले बाल॥
चलते ठुमक-ठुमक के जो वह डगमगाती चाल।
थांबें कभी जसोदा कभी नन्द लें संभाल॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥16॥

पहने झगा गले में जो वह दखिनी चीर का।
गहने में भर रहा गोया लड़का अमीर का॥
जाता था होश देख के शाहो वज़ीर का।
मैं किस तरह कहूं इसे छोरा अहीर का॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥17॥

जब पांवों चलने लागे बिहारी न किशोर।
माखन उचक्के ठहरे, मलाई दही के चोर॥
मुंह हाथ दूध से भरे कपड़े भी शोर-बोर।
डाला तमाम ब्रज की गलियों में अपना शोर॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥18॥

करने लगे यह धूम, जो गिरधारी नन्द लाल।
इक आप और दूसरे साथ उनके ग्वाल बाल॥
माखन दही चुराने लगे सबके देख भाल।
दी अपनी दधि की चोरी की घर घर में धूम डाल॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥19॥

थे घर जो ग्वालिनों के लगे घर से जा-बजा।
जिस घर को ख़ाली देखा उसी घर में जा फिरा॥
माखन मलाई, दूध, जो पाया सो खा लिया।
कुछ खाया, कुछ ख़राब किया, कुछ गिरा दिया॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥20॥

कोठी में होवे फिर तो उसी को ढंढोरना।
गोली में हो तो उसमें भी जा मुंह को बोरना॥
ऊंचा हो तो भी कांधे पै चढ़ कर न छोड़ना।
पहुंा न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥21॥

गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहां।
और उसने आ पकड़ लिया तो उससे बोले हां॥
मैं तो तेरे दही की उड़ाता था मक्खियां।
खाता नहीं मैं उसकी निकाले था चूंटियां॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥22॥

गर मारने को हाथ उठाती कोई ज़रा।
तो उसकी अंगिया फाड़ते घूसे लगा लगा॥
चिल्लाते गाली देते, मचल जाते जा बजा।
हर तरह वां से भाग निकलते उड़ा छुड़ा॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥23॥

गुस्से में कोई हाथ पकड़ती जो आन कर।
तो उसको वह सरूप दिखाते थे मुरलीधर॥
जो आपी लाके धरती वह माखन कटोरी भर।
गुस्सा वह उनका आन में जाता वहीं उतर॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥24॥

उनको तो देख ग्वालिनें जी जान पाती थीं।
घर में इसी बहाने से उनको बुलाती थीं॥
ज़ाहिर में उनके हाथ से वह गुल मचाती थीं।
पर्दे में सब वह किशन के बलिहारी जाती थीं॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥25॥

कहतीं थीं दिल में दूध जो अब हम छिपाऐंगे।
श्रीकृष्ण इसी बहाने हमें मुंह दिखाऐंगे॥
और जो हमारे घर में यह माखन न पाऐंगे।
तो उनको क्या ग़रज है यह काहे को आऐंगे॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥26॥

सब मिल जसोदा पास यह कहती थी आके बीर।
अब तो तुम्हारा कान्ह हुआ है बड़ा शरीर॥
देता है हमको गालियां फिर फाड़ता है चीर।
छोड़े दही न दूध, न माखन, मही न खीर॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥27॥

माता जसोदा उनकी बहुत करती मिनतियां।
और कान्ह को डराती उठा बन की सांटियां॥
जब कान्ह जी जसोदा से करते यही बयां।
तुम सच न जानो माता, यह सारी हैं झूटियां॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥28॥

माता कभी यह मेरी छुंगलिया छुपाती हैं।
जाता हूं राह में तो मुझे छेड़ जाती हैं॥
आप ही मुझे रुठाती हैं आपी मनाती हैं।
मारो इन्हें यह मुझको बहुत सा सताती हैं॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥29॥

माता कभी यह मुझको पकड़ कर ले जाती हैं।
गाने में अपने सथ मुझे भी गवाती हैं॥
सब नाचती हैं आप मुझे भी नचाती हैं।
आप ही तुम्हारे पास यह फ़रयादी<ref>गुहार लेकर</ref> आती हैं॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥30॥

एक रोज मुंह में कान्ह ने माखन झुका दिया।
पूछा जसोदा ने तो वहीं मुंह बना दिया॥
मुंह खोल तीन लोक का आलम दिखा दिया।
एक आन में दिखा दिया और फिर भुला दिया॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥31॥

थे कान्ह जी तो नंद जसोदा के घर के माह।
मोहन नवल किशोर की थी सबके दिल में चाह॥
उनको जो देखता था सो कहता था वाह-वाह।
ऐसा तो बालपन न हुआ है किसी का आह॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥32॥

सब मिलके यारो किशन मुरारी की बोलो जै।
गोबिन्द छैल कुंज बिहारी की बोलो जै॥
दधिचोर गोपी नाथ, बिहारी की बोलो जै।
तुम भी ”नज़ीर“ किशन बिहारी की बोलो जै॥
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥33॥

शब्दार्थ
<references/>