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"दहेज / पल्लवी मिश्रा" के अवतरणों में अंतर

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11:51, 8 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

समाचारों में
आजयह सनसनीखेज खबर
सुनाई गई है-
कि दहेज के लिए प्रताड़ित एक बहू
फिर जलाई गई है-
सुनकर एक किशोरी के मन में
दहशत सी छा गई-
और वह बहुत घबरा गई-
डरी-सी
सहमी-सी
पहुँची अपने पिता के पास-
और बोली-
होकर तनिक उदास-
पिताजी! मुझको ब्याह नहीं करना है-
दहेज के लिए प्रताड़ित होकर
हरगिज नहीं मरना है-
पिता ने बेटी की पीठ पर
कहा हाथ फेर कर
उसे ढाढस बँधाया,
और प्यार से समझाया,
बेटी! मैं तुम्हारा ब्याह शान से रचाऊँगा-
तुम्हारे दहेज के लिए
आसमानों से सितारे तोड़ लाऊँगा-
मेरे पास इतना धन है
कि दस बेतिटयों की शादी रचा सकता हूँ-
हीरे और मोतियों से
एक-एक को सजा सकता हूँ-
तू तो फिर भी इकलौती है;
फिर क्यों इस तरह उदास होती है?
बोल-
अब तो व्यर्थ नहीं घबराएगी-
शादी न करने की बात
फिर से नहीं दुहराएगी?
बेटी ने कहा-
लेकिन पिताजी! मेरी एक शर्त है;
मैं आपकी बात तभी मानूँगी
जब उस शर्त को पूरा करने का
आश्वासन पा लूँगी।
पिता ने हँसकर कहा-
तुमसे बहस करना बेकार है;
मुझे तुम्हारी हर शर्त स्वीकार है
बताओ तो भला-
चाहती हो क्या?
पिताजी! अभी-अभी आपने कहा है
कि दस बेटियों की शादी रचा सकते हैं
यानि
मेरे अलावा कम से कम
नौ गरीब बेटियों को जलने से बचा सकते हैं
इसीलिए
मैं चाहती हूँ
कि मेरे साथ-साथ
आप नौ गरीब बहनों का भी ब्याह रचाइए
और इसी बहाने
उन बदनसीबों का जीवन बचाइए
आपको हर हाल में
अपना किया वादा निभाना है
वरना
मुझे ससुराल नहीं जाना,
हरगिज नहीं जाना है,
हरगिज, हरगिज नहीं जाना है।